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महिला सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय नीति

भारत सरकार ने देश में महिलाओं की स्थिति सुधारने का लक्ष्य हासिल करने के लिए वर्ष 2001 में महिला सशक्तिकरण हेतु राष्ट्रिय नीति जारी की। भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मूल अधिकार, मूल कर्तव्य और राज्य के नीति-निदेशक तत्वों में लिंग समानता का सिद्धांत अंतर्निहित है। संविधान में न केवल महिलाओं को बराबरी की दर्जा दिया गया है, बल्कि इसमें राज्यों को इस बात के भी अधिकार दिये गये है कि वे महिला हितों के लिए आवश्यक कदम भी उठा सकते हैं।
एक लोकतान्त्रिक नीति की रूपरेखा के अंतर्गत हमारे कानून, विकास नीतियां, योजनाएं और कार्यक्रम विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के विकास को लक्षित करती है। 1977-78 की पांचवी पंचवर्षीय योजना से महिलाओं से जुडे़ उनके कल्याण से लेकर विकास तक के मुद्दे हल करने के दृष्टिकोण में एक उल्लेखनीय परिवर्तन आया है।
हालिया सालों में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए महिला सशक्तिकरण को केन्द्रीय मुद्दे के रूप में जगह दी गयी है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और कानूनी हक प्रदान करने के लिए 1990 में संसद में पारित एक कानून के जरिए ‘‘राष्ट्रीय महिला आयोग‘‘ का गठन किया। संविधान के 73वें व 74वें संशोधन के जरिए महिलाओं के लिए पंचायतों व नगर निगमों में स्थान आरक्षित किये गये। इससे स्थानीय स्तर पर नीति निर्माण व निर्णय निर्धारण में महिलाओं की भागीदारी की मज़बूत नीवं तैयार हुई।
भारत ने महिलाओं के बराबरी के अधिकार को सुरक्षित करने के प्रति वचनबद्ध अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधियों व मानवाधिकार समझौतों का अनुमोदन भी किया है। इनमें 1993 की महिलाओं के प्रति सभी तरह के भेदभाव को समाप्त करने की संधि, 1985 की नैरोंबी प्रगतिशील रणनीति संधि, 1995 की बीजिंग घोषणा व प्लेटफार्म फॉर एक्शन संधि, 1975 की मैक्सिको कार्ययोजना और संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीकृत 21वीं शताब्दी के लिए लिंग समानता और विकास व शांति पर घोषणा पत्र शामिल है।
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति में इस मुद्दे से जुड़ी अन्य नीतियों व नोवीं पंचवर्षिय योजना में किये गये वायदों का भी उल्लेख है।

महिला सशक्तिकरण नीति के उद्देश्य -
- आर्थिक व सामाजिक नीतियों के जरिए महिलाओं के विकास के लिए वातावरण तैयार करना।
- राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक , सभी क्षेत्रों में पुरूषों के बराबरी के आधार पर सभी मानवाधिकारों व मूल स्वतंत्रता का महिलाओं को लाभ पहुंचाना।
- राजनैतिक, आर्थिक , सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक , सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी व निर्णय निर्धारण में महिलाओं को बराबर अवसर प्रदान करना।
- सभी स्तरों पर स्वास्थ्य देखभाल, गुणात्मक शिक्षा, व्यावसायिक मार्गदर्शन, रोजगार, मेहनताना, पेशेगत स्वास्थ्य व सुरक्षा , सामाजिक सुरक्षा आदि में बराबर अवसर प्रदान करना।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाले सभी तरह के भेदभाव को दूर करने के लिए कानूनी तंत्र को मज़बूत बनाना।
- पुरूषों व महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के जरिए सामाजिक दृष्टिकोण व सामुदायिक प्रथा में बदलाव लाना।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाली सभी तरह की हिंसा को रोकना।
- नागरिक संगठनों, खासतौर पर महिलाओं के संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करना व उसे मज़बूत बनाना।
महिला सशक्तिकरण - वैश्विक स्थिति
पिछले तीन दशकों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता को बढ़ाने वाले कदमों या उपायों के जरिए महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता और मूलभूत मानवाधिकारों तक महिलाओं की पहुंच, पोषण व स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार के बारे में जागरूकता बढ़ी है। महिलाओं के दूसरे दर्ज का नागरिक होने के बारे में जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ जाति, वर्ग, आयु और धार्मिकता जैसे दूसरे कारकों के संबंध में समाजिक-सांस्कृतिक अनुकूलन के रूप में लिंग की धारणा ने भी जन्म लिया है। लिंग असल में महिलाओं का पर्यायवाची नहीं है और न ही पुरूषों के हितों की हानि दर्शाने वाला शून्य अंक वाला खेल है। इसके विपरित यह महिलाओं व पुरूषों दोंनो से और उनकी एक दूसरे के सापेक्ष स्थिति से संबंधित है । लिंग समानता मानव के सामाजिक विकास की ऐसी स्थिति को दर्शाती है जिसमें व्यक्तियों के अधिकारों जिम्मेदारियों और अवसरों को उनके महिला या पुरूष के रूप में जन्म लेने के तथ्य से तय नहीं किया जायेगा। दूसरे शब्दों में लिग समानता ऐसी स्थिति होगी जिसमें पुरूष और महिला दोनों ही अपनी पूरी क्षमता की अनुभूति करेंगे।
विश्व स्तर पर लिंग समानता स्थापित करने की महत्ता को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 1984 में अलग फण्ड के रूप में संयुक्त राष्ट्र महिला विकास फण्ड की स्थापना की गयी। उस समय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे मुख्यधारा की गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा। 1995 की महिलाओं पर हुई बीजिंग विश्व बैठक में घोषित प्लेटफार्म आॅफ एक्शन ने इस परिकल्पना को और विस्तार दिया। प्लेट फार्म आफ एक्शन में इसे लिंग मुख्यधारा कहा गया और सभी नीति निर्माण, अनुसंधान योजना निर्माण, समर्थन व सलाह , विकास क्रियान्वयन और संचालन तक लिंग परिदृश्य का उपयोग है।
लिंग समानता हासिल करने का संयुक्त राष्ट्र और दूसरी कई एजेसिंयों का कार्य एक दूसरे से नजदीकी रूप से जुड़े तीन क्षेत्रों की ओर अभिमुख है। महिलाओं की आर्थिक क्षमता को मजबूती प्रदान करना जिसमें नई तकनीकी और नए व्यापार एजेण्डा पर ध्यान केन्द्रित है , महिला नेतृत्व और राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहन देना और महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को समाप्त करना। इससे यह स्पष्ट है कि महिलाओं के लिए बराबरी का दर्जा हासिल करने के लिए अभी बहुत लम्बा फासला तय करना है और इस कार्य के लिए कई मंचों पर एकाग्र प्रयासों की आवश्यकता है।

(राजीव श्रीवास्तव)
अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक
तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम
जिला छतरपुर (म.प्र.)
स्रोतः समसामयिकी महासागर, 2009

क्या महिलायें दूर रहें राजनीति से

एक खुली चर्चा सुनिए (महिलायें और राजनीति)

अंधाधुंध दोहन - पृथ्वी पर जीवन

पिछले सौ डेढ़ सौ सालों में पृकृति का जो अवैज्ञानिक एवं अंधाधुंध दोहन हुआ है उसके परिणाम स्वरुप पृथ्वी पर जीवन के पाँचों आधारभूत तत्त्व संकट के दौर से गुजर रहे हैं.बीबीसी संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी हाल ही में बनारस गए थे । पेश है बनारस में गंगा की सेहत पर राम दत्त त्रिपाठी की यह रेडियो डायरी
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अच्छी खबर सबके लिए

पढ़ें इस खबर को काम आएगी और खुश होइए ................

अच्छी खबर..............


मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका परियोजना की अलीराजपुर इकाई से श्री मनीष गिरधानी ने भेजी है एक अच्छी खबर, धन्यवाद

सुख की कीमत

एक मूर्तिकार लगातार कई दिनों से जंगल से गुजरने के दौरान एक पेड़ के नीचे पड़े पत्थर पर अपनी थकान मिटाता थाउसे उस पत्थर से जैसे प्यार हो गयाथा सो उसने सोचा की क्यों इस पत्थर को एक आकार दे दिया जाए जिससे इसका प्रभाव और सम्मान बढ़ जाए, ऐसा विचार करके उसने अपने छैनी और हथोडी उठाकर पहली चोट जैसे ही पत्थर पर मारी पत्थर चीख उठा, ये क्या कर रहे हो ....
मूर्तिकार हतप्रभ रह गया उसने कहा मैं तुम्हें एक ऐसा आकार देना चाहता हूँ, जिससे समाज में तुम्हारा सम्मान बढ़ेगा, बस थोडा सा कष्ट होगा लेकिन उसके बाद आराम ही आराम होगा
पत्थर ने सोचा की अब समय आयाहै इस बाजू वाले छोटे पत्थर को मजा चखाने का, बहुत इतराता है .

पत्थर ने कहा - नहीं , मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ अगर तुम्हें ऐसा ही कुछ करना है तो इस बाजू वाले पत्थर परकरो मुझ पर नहीं
मूर्तिकार ने दोबारा पूछा लेकिन वह तस से मस नहीं हुआ आखिरकार उसने छोटे पत्थर को ही काटकर देवता का स्वरुप दे दिया. अब लोग देवता पर तो फूल आदि चढ़ाकर उसे पूजने लगे और बड़े पत्थर पर नारियल फोड़ने लगे
मोस - हर सुख की कीमत चुकानी पड़ती है
संजीव परसाई

नये दौर की, नये तेवर वाली गांव की लीडर

(ग्राम पंचायतों में महिला नेतृत्व पर उठने वाले सवाल अब पुराने होने लगे हैं , नए ज़माने की प्रतिनिधि अपने अधिकारों को पहचान उनका ग्राम विकास में बखूबी उपयोग कर रही हैं। महिला नेतृत्व को नए सिरे से परिभाषित करता मनोज कुमार का आलेख )
घर की चहारदीवारी और घूंघट में कभी अपना जीवन होम करने वाली ग्रामीण औरतें अब नये जमाने के साथ कदमताल कर रही हैं। वे नये तेवर के साथ मध्यप्रदेश के अलग अलग हिस्सों में यह जता दिया है कि वे एक बेहतर लीडर हैं जो न केवल घर सम्हाल सकती हैं बल्कि अवसर मिलने पर वे गांव की तस्वीर बदलने का माद्दा भी रखती हैं। मध्यप्रदेश के लिये यह नये किस्म का अनुभव है जब किसी ग्राम पंचायत की सरपंच अपने भ्रष्टाचारी सचिव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है तो कहीं गांधीगिरी के साथ ऐसे नाकाबिल सचिव के खिलाफ मैदान
में उतर आयी हैं। यह वही मध्यप्रदेश है जहां भ्रष्टाचार से लड़ने में नाकाम सरपंच अपने दायित्वों से पलायन कर जाती थीं लेकिन आज वे सक्सेस लीडर के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं।
पन्द्रह बरस से शायद कुछ अधिक ही हुआ होगा जब मध्यप्रदेश में पंचायतीराज व्यवस्था लागू की गई थी। महात्मा गांधी का सपना था कि सत्ता में ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी हो और इसके लिये वे पंचायतीराज व्यवस्था को लागू करने पर जोर दिया करते थे। उनकी मंशा थी कि इस व्यवस्था में स्त्रियों को बराबर का भागीदार बनाया जाए। महात्मा गांधी की सोच और सपने को सच करने की दृष्टि से मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था लागू की
गई। अपने आरंभिक दौर में पंचायतीराज व्यवस्था के जो परिणाम मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल सका। खासतौर पर महिलाओं की सक्रियता नहीं के बराबर रही।
जहां महिलायें सक्रिय भी हुर्इं तो वहां उनकी छाया बनकर उनके पति या परिवारवाले जिम्मेदारी सम्हाले रहे। हर बात पर उनसे पूछ लें, का जवाब मिलता था। कई पंचायतों में प्रभावशाली लोगों के कारण महिलाओं को अपना पद
छोड़ना पड़ा था। भ्रष्टाचार का दानव और इस दानव के रूप में अपने पंजे में सीधी-सादी महिला सरपंचों को लपेटे में लिया जाने लगा था।
आहिस्ता आहिस्ता पंचायती राज व्यवस्था में बदलाव दिखने लगा। महिलाओं में सक्रियता आने लगी। कल तक छाया बने पति और परिवार वाले किनारे होने लगे और निर्वाचित महिला सरपंच और पंच अपनी सोच के अनुरूप फैसला लेने लगे। इसका प्रतिशत भी बहुत कम था लेकिन बदलाव का एक कदम भी अर्थवान हुआ करता है। आज हालत यदि पूरी तरह नहीं बदले हैं तो भी बदलाव की बयार चल पड़ी है। हाल ही में हुए पंचायतों के चुनाव में ऐसे कई दृश्य बदलते हुए देखने को मिले।
राज्य के कई ग्राम पंचायतों में पूरी की पूरी सत्ता महिलाओं के हाथों में आ गयी। कई पंचायतों में चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाकर निर्विरोध निर्वाचन की प्रक्रिया अपनायी गयी और निर्विरोध महिलाओं की पंचायतें बन गयीं। इस समय मिले आंकड़ों को परखें तो दर्जन से भी ज्यादा पंचायतों में निर्विरोध चुनाव हुए हैं जहां सौफीसदी महिला पंच और सरपंचों के हाथों में सत्ता की चाबी है।
निर्वाचन प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद महिला सरपंचों का इम्तहान बाकि था। पहले से जमे पंचायत सचिव से काम लेना, पंचायत को प्राप्त बजट और विकास कार्य की रूपरेखा बनाना। अनेक पंचायतों में महिला सरपंचों को सचिव ने सहयोग किया लेकिन कुछेक पंचायतों में वे रोड़ा बन गये। घपले खुल जाने के डर और आगे की काली कमाई बंद हो जाने की चिंता में वे महिला सरपंचों से दो-दो हाथ करने जैसी स्थिति में खड़े थे लेकिन उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि जमाना बदल गया है। अब वे जिससे पंगा लेने की कोशिश कर रहे हैं, वे उनसे सुलह नहीं करेंगी बल्कि बाहर का रास्ता दिखाने से नहीं चूकेंगी।
कुछ ऐसा ही उदाहरण आदिवासी बहुल जिला मंडला के ग्राम पंचायत चिरईडोंगरी में देखने को मिला जहां सचिव की मनमानी के खिलाफ सरपंच सुषमा उइके ने विशुद्ध गांधीवादी ढंग से विरोध जाहिर किया। ग्राम पंचायत चिरईडोंगरी जिले नैनपुर विकासखंड में आता है जो जिला मुख्यालय से लगभग पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर बसा है। चिरईडोंगरी ग्राम पंचायत की सरपंच श्रीमती सुषमा उइके का कहना था कि उनका सपना अपने गांव के विकास का था किन्तु ग्राम पंचायत सचिव सुजीतसिंह अपनी मनमानी के आगे काम करने में लगातार बाधा पैदा कर रहा था। यही नहीं वह मनमाने ढंग से चैक से भुगतान कर रहा है। पूछे जाने पर वह कोई जवाब नहीं देता है और जब मैंने चेक पर हस्ताक्षर करना बंद कर दिया तो वह मुझे पद से हटाने की धमकी देता है। सरपंच सुषमा
उइके को सीईओ से भी शिकायत है कि कई बार प्रभारी सचिव सुजीत के खिलाफ शिकायत करने के बाद भी कार्यवाही नहीं की गई और उल्टे सीईओ मुझे पद छोड़ देने की बात कहते हैं। अपने अधिकारों का उपयोग न कर पाने से दुखी सुषमा उइके गांधीवादी तरीके से पंचायत सचिव का विरोध करते हुए मजदूरी करने में जुट गयी हैं। उनका मानना है कि एक दिन तो उनकी बात सुनी जाएगी। पंचायत सचिव की हठधर्मिता और सीईओ के रूखे व्यवहार से सरपंच दुखी जरूर है लेकिन निराश नहीं। वह कहती है कि एक दिन वह अपना अधिकार पाकर ही रहेंगी।
चिरईडोंगरी की सरपंच सुषमा उइके की तरह गांधीवादी तरीका अपनाने के बजाय देवास जिले के ग्राम बरखेड़ा की सरपंच उर्मिला चौधरी ने जता दिया कि लीडर कैसा होता है। गांव में अनेक वर्षाें से जमे बेजाकब्जे पर बुलडोजर चलवा दिया। उर्मिला के इस साहस की गांव वाले तारीफ करते नहीं थकते हैं। इसके पहले भी पंचायत प्रतिनिधि रहे किन्तु किसी ने इस ओर कार्यवाही करने में रूचि नहीं दिखायी। देवास जिले के जनपद पंचायत टोंकखुर्द के ग्राम पंचायत बरखेड़ा की सरपंच उर्मिला दसवीं कक्षा तक शिक्षित है और उम्र कुलजमा बाईस
बरस। गांव वाले उर्मिला को सरपंच बिटिया के नाम से पुकारते हैं। सरपंच उर्मिला बताती है कि यह बेजाकब्जा अनेक लोगों ने कर रखा था जिससे आवागमन के लिये रास्ता नहीं था। पद सम्हालने के बाद सबसे पहले वह इस कब्जे को हटाकर पक्का रास्ता बनवाना चाहती थीं। बेजा कब्जा तो हटा दिया गया है और अब पक्का रास्ता बनाने का काम भी जल्द ही शुरू हो जाएगा।
राज्य के पंचायतों में अधिकारों के लिये महिला सरपंच केवल लड़ाई नहीं लड़ रही हैं बल्कि वे कानून में प्राप्त अपने अधिकारों को पाने के लिये सजग और सर्तक हैं। हरदा जिले के ग्राम पंचायत पानतलाई की उम्रदराज पचास बरस की आदिवासी सरपंच ढापूबाई अक्षरज्ञान करने निकल पड़ी हैं। इस उम्र में पढ़ाई करने की जरूरत क्यों पड़ी के सवाल के जवाब में सरपंच ढापूबाई कहती हैं कि गांव के विकास की जिम्मेदारी सम्हालने के लिये साक्षर होना जरूरी है। सरपंच ढापूबाई एक अनुशासित छात्रा की तरह गांव के शासकीय पाठशाला में दाखिला लिया है। यही नहीं, सरपंच ढापूबाई प्रतिदिन नियमित रूप से सुबह ग्यारह बजे कक्षा शुरू होने के पूर्व पहुंच जाती हैं और सायं पांच बजे तक कक्षा छूटने तक वे अध्ययनरत रहती हैं। ढापूबाई की मंशा तो बचपन से ही स्कूल जाने की थी लेकिन कई कारण थे जो उनके मन की नहीं हो पायी। अब वे गांव की जनप्रतिनिधि हैं और इस नाते वे साक्षर होना जरूरी समझती हैं।
बदलाव के इस दौर की खास बात यह है कि चिरईडोंगरी की सरपंच सुषमा उइके, ग्राम पंचायत बरखेड़ा की उर्मिला चौधरी हो या ग्राम पंचायत पानतलाई की उम्रदराज पचास बरस की आदिवासी सरपंच ढापूबाई किसी की जिम्मेदारी को पूरा करने में न तो पति हस्तक्षेप करते हैं और न परिवार वाले। जो सरपंच निर्वाचित हुई हैं, वे ही अपनी लड़ाई लड़ रही हैं, जिम्मेदारी पूरी कर रही हैं। राज्य में पंचायतों के लिये शिवराजसिंह सरकार ने पचास फीसदी आरक्षण देकर न केवल महिलाओं का सम्मान किया है बल्कि उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया है। यह बदलाव इस बात का प्रमाण है। कोई शक नहीं कि राज्य के पंचायतों में बदलाव की यह बयार बताती है कि नये जमाने की ये नयी लीडर विकास की नयी कहानी लिखेंगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं मीडिया अध्येता हैं)

पंचायती राज - पंचायतों का सशक्तीकरण

सुधीर तिवारी
पंचायती राज संस्थायें भारत में लोकतंत्र की मेरूदंड है। निर्वाचित स्थानीय निकायों के लिए विकेन्द्रीकृत, सहभागिय और समग्र नियोजन प्रक्रिया को बढाव़ा देने और उन्हें सार्थक रूप प्रदान करने के लिए पंचायती राजमंत्रालय ने अनेक कदम उठाए हैं।

पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ)
इस योजना के तहत अनुदान प्राप्त करने की अनिवार्य शर्त विकेन्द्रीकृत, सहभागिय और समग्र नियोजन प्रक्रियाको बढाव़ा देना है। यह विकास के अन्तर को पाटता है और पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) और उसकेपदाधिकारियों की क्षमताओं का विकास करता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि स्थानीयआवश्यकताओं को पूरा करने में बीआरजीएफ अत्यधिक उपयोगी साबित हुआ है और पीआरआई तथा राज्योंने योजना तैयार करने एवं उन पर अमल करने का अच्छा अनु प्राप्त कर लिया है। बीआरजीएफ के वर्षके कुल 4670 करोड़ रुपए के योजना परिव्यय में से 31 दिसबर, 2009 तक 3240 करोड़ रुपए जारीकिये जा चुके हैं।

-गवर्नेंस परियोजना
2009-10 एनईजीपी के अन्तर्गत ईपीआरआई की पहचान मिशन पद्धति की परियोजनाओं के ही एक अंग के रूप में की गईहै। इसके तहत विकेन्द्रीकृत डाटाबेस एवं नियोजन, पीआरआई बजट निर्माण एवं लेखाकर्म, केन्द्रीय और राज्यक्षेत्र की योजनाओं का क्रियान्वयन एवं निगरानी, नागरिक-केन्द्रित विशिष्ट सेवायें, पंचायतों और व्यक्तियों कोअनन्य कोड (पहचान संख्या), निर्वाचित प्रतिधिनियों और सरकारी पदाधिकारियों को ऑन लाइन स्वयं पठन माध्यम जैसे आईटी से जुड़ी सेवाओं की सम्पूर्ण रेंज प्रदान करने का प्रस्ताव है। ईपीआरआई में आधुनिकता औरकार्य कुशलता के प्रतीक के रूप में पीआरआई में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने और व्यापक आईसीटी (सूचना संचारप्रविधि) संस्कृति को प्रेरित करने की क्षमता है।
ईपीआरआई में सभी 2.36 लाख पंचायतों को तीन वर्ष के लिए 4500 करोड़ रुपए के अनन्तिम लागत सेकम्प्यूटरिंग सुविधाएं मय कनेक्टिविटी (सम्पर्क सुविधाओं सहित) के प्रदान करने की योजना है। चूंकि पंचायतें, केन्द्र राज्यों के कार्यक्रमों की योजना तैयार करने तथा उनके क्रियान्वयन की बुनियादी इकाइयां होती हैं, ईपीआरआई, एक प्रकार से, एमएमपी की छत्रछाया के रूप में काम करेगा। अतः सरकार, ईएनईजीपी के अन्तर्गतईपीआरआई को उच्च प्राथमिकता देगी। देश के प्रायः सभी राज्यों (27 राज्यों) की सूचना और सेवाआवश्यकताओं का आकलन, व्यापार प्रक्रिया अभियांत्रिकी और विस्तृत बजट रिपोर्ट पहले ही तैयार की जा चुकीहैं और परियोजना पर अब काम शुरू होने को ही है।

महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण
राष्ट्रपति ने 4 जून, 2009 को संसद में अपने अभिभाषण में कहा था कि वर्ग, जाति और लिंग के आधार पर अनेकप्रकार की वर्जनाओं से पीड़ित महिलाओं को पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण के फैसले से अधिक महिलाओं कोसार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश का अवसर प्राप्त होगा। तद्नुसार मंत्रिमंडल ने 27 अगस्त, 2009 को संविधान की धारा को संशोधित करने के प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया ताकि पंचायत के तीनों स्तर की सीटों और अध्यक्षोंके 50 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित किये जा सकें। पंचायती राज मंत्री ने 26 नवम्बर, 2009 कोलोकसभा में संविधान (एक सौ दसवां) सशोधन विधेयक, 2009 पेश किया।

243 वर्तमान में, लगभग 28.18 लाख निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों में से 36.87 प्रतिशत महिलायें हैं। प्रस्तावितसंविधान संशोधन के बाद निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या 14 लाख से भी अधिक हो जाने की आशा है।

पंचायती राज संस्थाओं को कार्यों, विभाग और पदाधिकारियों का हस्तान्तरण
पंचायतें जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक संस्थायें हैं और कार्यों, विभाग तथा पदाधिकारियों के प्रभावी हस्तांतरण सेउन्हें और अधिक सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है। इससे पंचायतों द्वारा समग्र योजना बनाई जा सकेगी औरसंसाधनों को एक साथ जुटाकर तमाम योजनाओं को एक ही बिन्दु से क्रियान्वित किया जा सकेगा।

ग्राम सभा का वर्ष
पंचायती राज के 50 वर्ष पूरे होने पर 2 अक्तूबर, 2009 को समारोह का आयोजन किया गया। स्वशासन में ग्रामसभाओं और ग्राम पंचायतों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के महत्व को देखते हुए 2 अक्तूबर, 2009 से 2 अक्तूबर, 2010 तक की अवधि को ग्राम सभा वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। ग्राम सभाओं की कार्य प्रणाली मेंप्राथमिकता सुनिश्चित करने के सभी संभव प्रयासों के अतिरिक्त, निम्नलिखित कदम उठाए जा रहे हैं--पंचायतों, विशेषतः ग्राम सभाओं के सशक्तीकरण के लिए आवश्यक नीतिगत, वैधानिक और कार्यक्रम परिवर्तन, पंचायतों मेंअधिक कार्य कुशलता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु सुव्यवस्थित प्रणालियों और प्रक्रियाओं कोऔर ग्राम सभाओं तथा पंचायतों की विशिष्ट गतिविधियों को आकार देना और ग्राम सभाओं तथा पंचायतों कीविशिष्ट गतिविधियों के बारे में जन-जागृति फैलाना।

न्याय पंचायत विधेयक, 2010
वर्तमान न्याय प्रणाली, व्ययसाध्य, लम्बी चलने वाली प्रक्रियाओं से लदी हुई, तकनीकी और मुश्किल से समझ मेंआने वाली है, जिससे निर्धन लोग अपनी शिकायतों के निवारण के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा नहीं ले पाते।इस प्रकार की दिक्कतों को दूर करने के लिए मंत्रालय ने न्याय पंचायत विधेयक लाने का प्रस्ताव किया है।प्रस्तावित न्याय पंचायतें न्याय की अधिक जनोन्मुखी और सहभागिय प्रणाली सुनिश्चित करेंगी, जिनमेंमध्यस्थता, मेल-मिलाप और समझौते की अधिक गुंजाइश होगी। भौगौलिक और मनोवैज्ञानिक रूप से लोगों केअधिक नजदीक होने के कारण न्याय पंचायतें एक आदर्श मंच संस्थायें साबित होंगी, जिससे दोनों पक्षों औरगवाहों के समय की बचत होनी, परेशानियां कम होंगी और खर्च भी कम होगा। इससे न्यायपालिका पर काम काबोझ भी कम होगा।

पंचायत महिलाशक्ति अभियान
यह निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों (ईडब्ल्यूआर) के आत्मविश्वास और क्षमता को बढाऩे की योजना है ताकि वे उनसंस्थागत, समाज संबंधी और राजनीतिक दबावों से ऊपर उठकर काम कर सकें, जो उन्हें ग्रामीण स्थानीयस्वशासन में सक्रियता से भाग लेने में रोकते हैं। बाइस राज्यों में कोर (मुख्य) समितियां गठित की जा चुकी हैं औरराज्य स्तरीय सम्मेलन हो चुके हैं। योजना के तहत 9 राज्य समर्थन केन्द्रों की स्थापना की जा चुकी है। ये राज्यहैं-- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ , हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, सिक्किम, केरल, पश्चिम बंगाल और अंडमान एवंनिकोबार द्वीप समूह। योजना के तहत 11 राज्यों में प्रशिक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता लाने के कार्यक्रम होचुके हैं। ये राज्य हैं-- आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ग़ोवा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मणिपुर, केरल, असम, सिक्किम और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह।

सभागीय स्तर के 47 सम्मेलन 11 राज्यों (छत्तीसगढ़, ग़ोवा, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, सिक्किम, मणिपुर, उत्तराखंड , पश्चिम बंगाल और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह) में आयोजित किए गए हैं।गोवा और सिक्किम में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों और निर्वाचित युवा प्रतिनिधियों (ईडब्ल्यूआर्स ईवाईआर्स) के राज्य स्तरीय संघ गठित किये जा चुके हैं।

ग्रामीण व्यापार केन्द्र (आरबीएच) योजना
भारत में तेजी से हो रहे आर्थिक विकास को ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से पहुंचाने के लिएमें आरबीएच योजना शुरू की गई थी। आरबीएच, देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विकास का एक ऐसासहभागिय प्रादर्श है जो फोर पी अर्थात पब्लिक प्राईवेट पंचायत पार्टनरशिप (सरकार, निजी क्षेत्र, पंचायतभागीदारी) के आधार पर निर्मित है। आरबीएच की इस पहल का उद्देश्य आजीविका के साधनों में वृद्धि के अलावाग्रामीण गैर-कृषि आमदनी बढाक़र और ग्रामीण रोजगार को बढाव़ा देकर ग्रामीण समृद्धि का संवर्धन करना है।

2007 राज्य सरकारों के परामर्श से आरबीएच के अमल पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करने के लिए 35 जिलों काचयन किया गया है। संभावित आरबीएच की पहचान और उनके विकास के लिए पंचायतों की मदद के वास्ते गेटवेएजेन्सी के रूप में काम करने हेतु प्रतिष्ठित संगठनों की सेवाओं को सूचीबद्ध किया गया है। आरबीएच की स्थापनाके लिए 49 परियोजनाओं को विभागीय सहायता दी जा चुकी है। भविष्य में उनका स्तर और ऊंचा उठाने के लिएआरबीएच का मूल्यांकन भी किया जा रहा है। (पसूका)

आज से सभी बच्चों को मिलेगा शिक्षा का हक....

आज देश के उन बच्चों के लिए खुशी का दिन है जो किसी भी कारण से स्कूल जाने से छूट जाते हैं. आज से भारत में 6-14 साल के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा का क़ानून लागू हो जायेगा. नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 एक अप्रैल से प्रदेश में लागू होने जा रहा है। अधिनियम के प्रावधानों के तहत 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का शत-प्रतिशत नामांकन, उपस्थिति तथा बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण कराने की संवैधानिक अनिवार्यता का निर्वहन राज्य सरकार तथा स्थानीय निकाय करेंगे। उन्होंने बताया कि एक्ट निर्धारित मापदण्डों के तहत जितने शिक्षकों की आवश्यकता होगी, उसकी पूर्ति छह माह के भीतर कर ली जायेगी। इसके लिये रोडमैप भी बनाया गया है।


संविधान के अनुच्छेद 45 में 6-14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने की बात है,

2002 में 86 वें संविधान संशोधन ऐसा शिक्षा के अधिकार की बात कही गयी है.

2009 में शिक्षा के अधिकार के अधिकार का बिल पास हुआ

अब 01 अप्रेल से ये देश के सारे स्कूलों में लागू होगा.


खासियत

6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा

प्रवेश, उपस्थिति एवं प्रारंभिक शिक्षा की अनिवार्य पूर्णता सुनिश्चित करना

पूरे साल में कभी भी बच्चों को प्रवेश दिया जायेगा

स्कूल जन्म प्रमाण पत्र, स्थानांतर प्रमाणपत्र आदि दस्तावेजों के होने पर भी स्कूल देंगे.

अनामांकित एवं शाला से बाहर बच्चों के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था

किसी भी बच्चे को कक्षा 8 तक फेल करने पर प्रतिबंध

बच्चों को शारीरिक दण्ड देने एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित करना पूर्णत: प्रतिबंधित

बच्चों के लिए उनके निर्धारित पड़ोस में शिक्षा की सुविधा 3 वर्ष में उपलब्ध कराने की बाध्यता

नियम, मापदण्ड के अनुरूप 3 वर्ष में प्रत्येक शाला में राज्य सरकार स्कूलों में आधारभूत संरचना जैसे भवन, खेल मैदान, लाइब्रेरी आदि जैसी जरूरी चीजें उपलब्ध कराएगी.

शिक्षक-छात्र अनुपात अनुरूप शिक्षकों की व्यवस्था 6 माह में

अच्छी गुणवत्ता की प्रारंभिक शिक्षा

शिक्षकों का गैर शिक्षकीय कार्य में लगाना प्रतिबंधित। (दशकीय जनगणना, चुनाव एवं आपदा राहत को छोड़कर)

शाला विकास योजना निर्माण, प्रबंधन, मॉनीटरिंग का कार्य स्थानीय निकाय के सहयोग से शाला प्रबंधन समिति द्वारा

निजी स्कूलों में केपिटेशन फीस एवं प्रवेश के लिए स्क्रीनिंग प्रतिबंधित,

गैर अनुदान प्राप्त शालाओं के लिए अपने पड़ोस के न्यूनतम 25 प्रतिशत बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदाय करना अनिवार्य

प्रति छात्र व्यय अथवा गैर अनुदान प्राप्त शाला की वास्तविक फीस जो भी कम हो के आधार पर राज्य द्वारा फीस की प्रतिपूर्ति

बिना मान्यता के किसी भी स्कूल का संचालन नहीं

प्रत्येक शाला हेतु न्यूनतम कार्य दिवस एवं शिक्षण के घंटे निर्धारित


प्रदेश की स्कूल शिक्षा मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस ने कहा है

इसके तहत अनामांकित एवं शाला से बाहर बच्चों के लिये विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जायेगी। किसी भी बच्चे को कक्षा आठवीं तक फेल करने पर प्रतिबंध रहेगा। बच्चों को शारीरिक दण्ड देने एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित करना भी पूर्णत: प्रतिबंधित रहेगा। समस्त बच्चों के लिये उनके निर्धारित पड़ोस में शिक्षा की सुविधा तीन वर्ष में उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार तथा स्थानीय निकायों को सौंपी गई है। नियत मापदण्ड के अनुरूप प्रत्येक शाला में अधोसंरचना की व्यवस्था तीन वर्ष में तथा शिक्षक छात्र अनुपात के अनुरूप शिक्षकों की व्यवस्था के लिये छह माह का समय निर्धारित किया गया है।

साथ ही प्रदेश में एक्ट को लागू कराने के अलावा उसके सफल क्रियान्वयन हेतु अच्छी गुणवत्ता की प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराना होगी। शिक्षकों का गैर शिक्षकीय कार्य में लगाना प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह प्रतिबंध दशकीय जनगणना, चुनाव एवं आपदा राहत को छोड़कर लागू रहेगा। शाला विकास विकास योजना, निर्माण, प्रबंधन, मानीटरिंग का कार्य स्थानीय निकाय के सहयोग से शाला प्रबंधन समिति द्वारा किया जायेगा। निजी स्कूलों में केपिटेशन फीस एवं प्रवेश के लिये स्क्रीनिंग अब पूर्णत: प्रतिबंधित रहेगी। गैर अनुदान प्राप्त शालाओं को अपने पड़ोस के न्यूनतम 25 प्रतिशत बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना अनिवार्य होगा। राज्य द्वारा किया जा रहा प्रति छात्र व्यय अथवा गैर अनुदान प्राप्त शाला की वास्तविक फीस जो भी कम हो के आधार पर राज्य द्वारा फीस की प्रतिपूर्ति की जायेगी। अब बिना मान्यता के किसी भी स्कूल का संचालन नहीं किया जा सकेगा। प्रत्येक शाला हेतु न्यूनतम कार्य दिवस एवं पढ़ाने के घण्टे निर्धारित रहेंगे।


शिक्षा का अधिकार और हमारी भूमिका

महिलाओं और बच्चियों को साक्षर कर सशक्त बनाना तेजस्विनी कार्यकरण के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है, इस अभियान को कार्यक्रम के छह जिलों में सफल बनाने हम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं -

शिक्षा की अनिवार्यता का प्रचार प्रसार करें

कार्यक्रम के अंतर्गत स्वसहायता समूह सदस्यों को साक्षर करने अभियान चलाया जा रहा है सदस्यों को इस हेतू जागरूक करें की वे स्वयं भी शिक्षित हों और अपने बच्चों को भी अनिवार्य रूप से स्कूल भेजें.

स्वसहायता समूह ग्रामों में स्कूल चलो अभियान भी प्रारंभ कर सकते है, तेजस्विनी के कुछ समूहों ने पहले इस तरह के अभियान चलाये है जिनके परिणाम सार्थक रहे हैं.

लोकेशन स्टाफ मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा क़ानून के प्रावधानों को भली भाँती समझ लें और सभी समूह बैठकों में इस क़ानून के सभी

पहलुओं पर चर्चा करें ताकि महिलाओं में जागरूकता के साथ जानकारी का भी प्रवाह हो.

राज्य सरकार द्वारा दो अप्रैल को शिक्षा चौपाल और चौदह अप्रैल को ग्राम सभा के साथ शिक्षा सभा का आयोजन किया गया है, स्वसहायता

समूहों को प्रेरित करें की वे इन विशेष सभाओं में आवश्य रूप से भाग लें.

लोकेशन स्टाफ और स्वसहायता समूह मिलकर इस हेतु प्रयास कर सकते हैं की कुल 2779 ग्रामों के 180000 स्वसहायता

समूह परिवारों के साथ ग्राम का कोई भी बच्चा स्कूल शिक्षा से अछूता रहे.

समस्त अशासकीय संगठन इस हेतु अपनी रणनीति भी बनाकर स्वसहायता समूहों को मदद कर सकते हैं.

संजीव परसाई, संचार अधिकारी