Showing posts with label टीकमगढ़. Show all posts
Showing posts with label टीकमगढ़. Show all posts

’’आगे आयें लाभ उठायें''

ग्राम पोहा विकास खण्ड निवाड़ी का एक ग्राम है जो विभिन्न मुहल्लों में बंटा है ग्राम पोहा में यादव, कुषवाहा, पण्डित, पाल, बंषकार, बढ़ई एवं रैकवार आदि जाति के लोग रहते हैं जहां का आय का साधन कृषि मजदूरी है। इसी ग्राम में एक मुहल्ला है ताराग्राम जो ग्राम की सीमा से लगे बरूआसागर डैम के पास पड़ता है जो मुख्य बस्ती से काफी दूरी पर है।
इस ग्राम में जब क्षेत्रीय कार्यकर्ता कु. रष्मि राय समूह गठन पर ग्राम की महिलाओं से चर्चा कर रही थी तभी महिलाओं ने कहा हमें समूह से कुछ भी लाभ नहीं होता है सरकारी समूहों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलता है। आपके द्वारा बनाये गये समूह को क्या पैसे का लाभ मिलेगा इस पर रष्मि राय ने बताया कि हम लोग अपको सषक्त बनायेंगे और सरकार की विभिन्न योजनाओं की जानकारी देंगे जो आप तक नहीं पहुंच पाती है। कु. रष्मि राय ने महिला बाल बिकास की विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी उनमें से एक लाड़ली लक्ष्मी योजना भी थी जिसके बारे में रष्मि ने बिस्तार से बताया। जब रष्मि राय अगली बैठक करने उस ग्राम में गयी तो वहां की एक महिला ने स्वय आकर बताया कि बहन जी जैसा आपने लोगों को समझाया था उसी के अनुसार हमने अपना फार्म लाड़ली लक्ष्मी योजना के लाभ के लिये भर दिया है। इस पर रष्मि ने बताया कि आप लोगों को समूह में इसी प्रकार की विभिन्न जानकारी मिलती रहेगी और यही आप लोगों को लाभ है। इसके बाद रष्मि ने समूह गठन पर चर्चा की जिसमें उस महिला काफी सहायता और तीन स्वय सहायता समूहों का गठन हुआ।

परिवार नियोजन - महिला का अधिकार, सदस्यों की मदद से महिला को मिला परिवार नियोजन का अधिकार

''कार्यकर्ता के समझाने पर भी उसके पति ने यह कहकर मना कर दिया कि बहनजी आप अपनी नौकरी करो, हमारे परिवार के बीच में न पड़ो।''
ग्राम गिद्खिनी विकास खण्ड निवाड़ी के बड़ी माता तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह की बैठक में क्षेत्रीय कार्यकर्ता कु. ज्योति तिवारी ने परिवार नियोजन के बारे समूह में चर्चा कर उन्हें जागरूक किया। इस जानकारी को पाकर सदस्यों में भरोसे का संचार हुआ और वे इसे व्यक्तिगत जीवन में अपनाने के लिये तत्पर हो गयी।इसी प्रक्रिया में समूह की सदस्य रामरती अहिरवार ने उक्त जानकारी को अपने पति से बाँटा पर पति ने कड़े शब्दों में इंकार कर दिया । कार्यकर्ता के समझाने पर भी उसके पति ने यह कहकर मना कर दिया कि बहनजी आप अपनी नौकरी करो, हमारे परिवार के बीच में न पड़ो।बैठक में इस विषय पर चर्चा करते हुये समूह सदस्यों ने निर्णय लिया कि हम सभी महिलायें चलकर आपके पति से बात करते हैं जब सभी ने एक साथ जाकर उसके पति को समझाया तब उसको परिवार नियोजन के बारे में जानकारी हुई । तब वह स्वयं अपनी पत्नि को लेकर अस्पताल गये और परिवार नियोजन को अपनाया। साथ ही सदस्यों और कार्यकर्ता से माफी मांगी कि आप तो हमारे हित में कार्य कर रही हैं अतः हमसे जो गलती हुई है उसके लिये हम माफी चाहते हैं।इस प्रकार ग्राम गिद्खिनी के बड़ीमाता समूह की महिलाओं ने जाना कि परिवार नियोजन महिला का अधिकार है। इस पर समुदाय को जागरूक करना आवष्यक है।

समन्वय व सामंजस्य का फण्डा.............

''अलग-अलग व्यक्ति का एक ही सच पर सोचने का तरीका बिल्कुल फर्क व अलग दृष्टि से होता है। इसलिए उनके विचारों के निष्कर्ष का काफी हिस्सा विरोधाभासी होता है।''
ब्रम्हांड की संरचना में ज्यादातर दो विपरीत जोडों के संयोजन को देखा जा सकता है। जैसे-जहाँ ज्ञान है वहां अनदेखी है, जहाँ खुशी है वहां दुख है, जहाँ जिन्दगी है वहाँ मृत्यु है इसी तरह और भी । इससे यह तो सुनिश्चित होता है,कि जिन्दगी हमेशा कुछ विपरीत विकल्पों पर ही आधारित है। ये विकल्प एक समूह में होंगे और इन सभी समूहों के विकल्पों के अपने-अपने मकसद हैं। जब हम इनके संबंध में विचार करते हैं तब ये मकसद सदैव टकराव व मतभेद का कारण बनते हैं, सच्चाई का अपना अलग वृहद लक्षण है, जो कि किसी भी सामान्य मानव द्वारा समझा व अपनाया नहीं जा सकता । इसके लिये उसे सतत अभ्यास की आवश्यकता होगी । अलग-अलग व्यक्ति का एक ही सच पर सोचने का तरीका बिल्कुल फर्क व अलग दृष्टि से होता है। इसलिए उनके विचारों के निष्कर्ष का काफी हिस्सा विरोधाभासी होता है। इसी लिए अंतिम निष्कर्ष ''प्राकृत्रिक रुप से आपसी समन्वय व सामन्जस्य’’ का गणित तय करता है।

स्वल्पना तिवारी,
अतिरिक्त कार्यक्रम प्रबंधक,
टीकमगढ़

आधी आबादी का सच - सम्मान और बराबरी की हकदार हैं महिलाऐं

विकास प्रक्रिया में महिलाओं का क्या योगदान है, इसका अनुमान दुनिया के 31 देशों में किये गये एक अध्ययन के निष्कर्षो से लगाया जा सकता है। इस निष्कर्ष में यह बात सामने आई थी कि महिलाऐं विभिन्न कार्यों में पुरुषों की अपेक्षा अधिक समय देती हैं। विकासशील देशों में महिलाऐं पुरुषों की तुलना में पुरुषों के मुकाबले 13 % और विकसित देशों में 6 % ज्यादा समय देती विश्व की आधी आबादी याने महिलाओं ने पुरुषों से जिस तरह कंधे से कंधा मिला कर कार्य किया है, उससे ही समूचा विश्व तरक्की और खुशहाली के रास्ते पर अग्रसर हो सका है। इसके बावजूद महिलाओं की भागीदारी को वह मान सम्मान नहीं मिल पाया है, जिसकी वह हकदार हैं। सबसे चोंकाने वाली बात यह है, कि भारत ही नहीं अपितु समूचे विष्व की महिलाऐं शोषित एवं पीड़ित हैं। विश्व में होने वाले कार्यो का 60 % कार्य महिलाऐं करतीं हैं लेकिन दुनिया भर की महिलाओं के हिस्से में 10 % जमीन का मालिकाना हक प्राप्त नहीं है अर्थात् 90 % से अधिक जमीन के मालिक पुरुष हैं। विश्व की आधी आबादी पुरुषों से अधिक घंटे कार्य करते हुए 13 % अधिक समय घरेलू कार्यो में भी लगाती हैं। इसके बदले उन्हें प्राप्त होता है पुरुषों से 30 से 40 % कम औसत वेतन । महिलाओं द्वारा पुरुषों की बराबरी से कार्य करने के बाद भी उन्हें कम वेतन और मजदूरी देना, उन्हें आर्थिक रुप से सशक्त बनने में बाधक सिद्ध होता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है, इसी कारण उचित देखभाल के अभाव में लाखों महिलाऐं हर साल गर्भवती होने पर उसकी कठिन प्रक्रिया के दौरान अपने प्राण त्याग देती हैं,तो लाखों महिलाऐं असुरक्षित गर्भपात के कारण दम तोड़ देती हैं। गर्भ निरोध के लिए अपनाऐ जाने वाले स्थाई साधनों में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का खुलासा नसबंदी से हो जाता है जिससे 10 % से भी कम पुरुष नसबंदी करवाते हैं,जबकि 90 % से अधिक मामलों में महिलाओं को ही नसबंदी करवानी पड़ती है,जबकि महिलाओं की नसबंदी प्रक्रिया पुरुषों की तुलना से ज्यादा कठिन है। भारत में जनसंख्या वृद्धि के लिए महिलाओं को मुख्य रुप से दोषी ठहराया जाता है, जबकि इसमें पुरुष एवं परिवार की पुत्र प्राप्ति की लालसा मुख्य कारण होती है। गर्भावस्था एवं शिशु जन्म के दौरान देखरेख के अभाव में रक्त अल्पता एवं कुपोषण की शिकार बनकर रोगी बन जाती है यही कारण है कि भारत में महिलाओं की औसत आयु में भी कमी आई है। भारत जैसे देशों में महिला शिक्षा की कमी से नारी प्रगति को अवरुद्ध कर रखा है। एक ओर जहाँ केरल,महाराष्ट्र,तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में महिला साक्षरता दर संतोषजनक है वहीं उत्तरप्रदेष,मध्यप्रदेष,राजस्थान,तथा बिहार, जैसे राज्यों में साक्षरता दर चिंताजनक है क्योंकि इन 4 प्रांतों में देश की बड़ी जनसंख्या निवास करती है (33।57 करोड़ 1991 की जनगणना अनुसार) कृषि क्षेत्र में भी महिलाओं का कार्य पुरुषों से अधिक है लेकिन वे सिर्फ श्रमिक बनकर रह गई हैं। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है जिससे महिलाओं की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसके तहत वे अपना योगदान अधिक से अधिक दे रहीं हैं। एक अध्ययन के अनुसार 78 % कृषक महिलाऐं 51 से 96 % तक कृषि कार्य पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर करती हैं। विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे विकासशील देश की ग्रामीण महिलाऐं पुरुषों से औसतन दस गुना ज्यादा घंटे काम कर रहीं हैं। महिलाओं की घटती संख्या भी उनके साथ होने वाले भेदभाव को बयां करती हैं, 1901 में प्रति हजार पुरुषों पर 972 महिलाऐं थी जो 1991 में घटते 927 प्रति हजार पर पहुँच गई थी। उपरोक्त निष्कर्षों से यह बात सामने आती है,कि महिलाऐं वे सब काम कर रहीं हैं जो पुरुष करते हैं। इसके बावजूद यदि समाज महिलाओं की उपेक्षा करे, उनका शिक्षित होने का हक छीने, उनके समुचित विकास पर ध्यान न दे, पुरुषों के बराबर ऊॅंचा उठाने की कोशिश न करे तो वह समाज निश्चित रुप से विकास के रास्ते आगे नहीं बढ़ सकता है। महिलाओं को पर्याप्त सम्मान उनके कार्य को सराहना और बराबरी का दर्जा देना आज की पहली आवष्यकता है। मध्य प्रदेश के 6 जिलों टीकमगढ़,पन्ना,छतरपुर,डिण्डोरी,मंण्डला और बालाघाट जिलों में संचालित तेजस्विनी ग्रामीण महिला सषक्तिकरण कार्यक्रम में इन सभी बातों का समावेष किया गया है। योजनांतर्गत 180000 महिलाओं को संगठित कर सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक रुप से सषक्त बनाने के जमीनी प्रयास शुरु हो चुके हैं, परिणाम स्वरुप ग्रामीण महिलाओं में बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं। महिलाऐं उनके विकास के तीन आधार स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर बाते करने लगी हैं।

सुशील कुमार वर्मा
जिला कार्यक्रम प्रबंधक
तेजस्विनी कार्यक्रम टीकमगढ़

गाँव में रोजगार व पंचायतों की भूमिका

"सरकारों के सामने यक्ष प्रश्न है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक रोजगार के अवसर कैसे पैदा हों, दरअसल जरूरत इसके मूल में जाने कि है, पहले यह तो तय किया जाए कि असल में ये युवा बेरोजगार क्यों है ? समस्या को उठाया है टीकमगढ़ कि अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक सुश्री स्वल्पना तिवारी ने। तेजस्विनी कार्यक्रम के अर्न्तगत महिलाओं के लिए रोजगार चयन कि बात प्रारम्भ हो चुकी है, अतः ये विचार प्रासंगिक हैं साथ ही दिशा देने वाले भी, कृपया इस चर्चा को आगे बढायें ..........
आपके विचारों का स्वागत है
आज ग्रामीण परिदृष्य कमोवेश यही है,कि कुछ पढ़ा लिखा युवा वर्ग अपनी श्रम शक्ति की अनुपयोगिता के चलते बेकार घूमते-फिरते अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। यह इसलिए नहीं कि वे अकर्मण्य हैं, यह तो इस कारण कि उनकी क्षमतानुकूल रोजगार या स्वरोजगार उपलब्ध नहीं है। आप चाहे तो किसी भी युवा को रोक कर पूछ सकते है कि भई क्या कर रहे हैं । जबाब घुमा फिरा कर यही होगा रोजगार की तलाश । बात यहीं नहीं खत्म होती समस्या तो और दुरुह तब होती है जबकि हम देखते हैं, लोगों की विषमताऐं मात्र सामाजिक, आर्थिक या भौगौलिक नहीं है। वरन उनके कार्य करने की आदतें व आवश्यकताएं भी भिन्न हैं ऐसी स्थिति में ही पंचायतों की सार्थकता समझ आती है। प्रत्येक पंचायतें अपने लोगों की आवश्यकता व क्षमताओं को ध्यान में रखते हुये स्थानीय उपलब्धताओं व बाह्य सहयोग के आधार पर रोजगार उपलब्ध करवाने का प्रयास कर सकती हैं। ये क्षेत्र सामान्यतः कृषि,पशुपालन ,लघुउधोग, वन व खनन आधारित हो सकते हैं। यह तो सभी जानते है,कि अंतिम छोर का व्यक्ति गरीब है। इसके लिये सरकारें अथक प्रयासों से गरीबी दूर करने के लिए अनेकों योजनाऐं तैयार कर उन्हें लागू भी करतीं हैं। किन्तु फ्रिक के साथ रणनीति तय करने की जरुरत यह है, कि योजनाओं की विस्तृत व सही जानकारी उस अंतिम व्यक्ति तक समय पर उपलब्ध हो सके।
पंचायती राज व्यवस्था के पश्चात यह अपेक्षा रही कि यह कमी अब पंचायतों के दायित्व निर्वहन से दूर होगी । किन्तु विडम्बना यह है, कि आज भी वास्तविक हितग्राही तक या कहें जन-जन तक पूर्ण जानकारी का अभाव यथावत विधमान है। यही कारण है कि इतनी सार्थक योजनायें भी गरीबी कम नहीं कर पा रहीं हैं। यहीं गांव की पंचायतें लोगों की मदद कर सकती हैं। पंचायतों की बैठकों में सरकारी अमले को बुलाकर योजनाओं व कार्यक्रमों की जानकारी ली जाकर समस्त ग्रामवासियों तक पहुंचायी जाए ।
ग्राम व ग्रामवासियों की दशा सुधारने की जटिल समस्या आज सभी पंचायतों, विभागों व गैर सरकारी संगठनों के सामने अपना विकराल रुप धर कर खड़ी हैं। इसके लिये अतिरिक्त प्रयत्नों की आवश्यकता तो है ही किन्तु इन प्रयत्नों को सूक्ष्म से बृहद की दिशा में देखने की आवश्यकता होगी । इसके लिये हमारे रणनीतिकारों व सामाजिक योद्धाओं को स्वरोजगार की दिशा व भी दशा को समझना होगा । तभी हम ग्रामीण स्तर पर रोजगार को सुनिश्चित कर जीवन स्तर में सुधार के साथ-साथ पलायन जैसी समस्या से निजात पा सकेगे।

स्वल्पना तिवारी ,
अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक,
तेजस्विनी टीकमगढ़ म.प्र.




निवाड़ी में तेजस्विनी समूहों की बैठक का आयोजन


विगत दिनों तेजस्विनी कार्यक्रम के अन्तर्गत स्व-सहायता समूहों की एक ग्राम स्तरीय बैठक का आयोजन निवाड़ी ब्लोक के ग्राम असाटी में किया गया जिसमें ग्राम में गठित सात स्वयं सहायता समूहों की लगभग 80 महिलाओं ने भाग लिया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री ग्यास अहमद ने महिलाओं को तेजस्विनी कार्यक्रम के उद्देश्यों की विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए मध्य भारत ग्रामीण बैंक के मैंनेजर श्री डी.के. जैन ने बताया कि तेजस्विनी परियोजना के अन्तर्गत महिलाओं के स्व-सहायता समूह को गठन किया जाना है लेकिन साथ ही महिलायें आपसी लेनदेन करें और साथ ही छोटी-छोटी आय अर्जन गतिविधियों को व्यक्तिगत स्तर पर शुरू करें भविष्य में बैंक द्वारा भी आपको छोटे-छोटे ऋणों के माध्यम से सहयोग किया जा सकता है। महिला बाल विकास से आये परियोजना अधिकारी श्री विनोद परस्ते जी ने विभाग द्वारा चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी महिलाओं को लाड़ली लक्ष्मी के उद्देश्यों के जानकारी देते हुए महिला पुरूण लिंग अनुपात को बताते हुए समझाया कि लाड़ली लक्ष्मी योजना के द्वारा कन्याओं के जन्मदर में वद्धि तथा शादी के समय होने वाले आर्थिक सहयोग की जानकारी दी। घरेलु महिला पर होने वाली हिंसा के लिये महिलायें आंगनवाड़ी से किस प्रकार सहयोग ले सकती हैं। महिला बाल विकास से आयी सुपरबाईजर कु. दीपाली जैन ने आंगनवाड़ी के द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी दी। अन्त में अतिथियों और समूह की महिलाओं का आभार राजेश श्रीवास्तव व्यक्त किया। इस कार्यक्रम का आयोजन संस्था Development Alternative ने किया ।

राजेश श्रीवास्तव
लोकेशन समन्वयक, निवारी , जिला टीकमगढ़

गरीब भगवती बाई ने साइकिल की दुकान खोली और बच्चों को खसरे से बचाया समूहों ने - टीकमगढ़ में समूहों की पहल

तेजस्विनी समूहों के माध्यम से महिलाओं के व्यवहार में परिवर्तन आने के साथ साथ अब वे अपने स्वयं के बल पर परिवर्तन का बीडा भी उठाने लगी हैं, समूह सदस्यों में जहाँ एक और अपने सरोकारों को लेकर जागरूकता आयी है वहीँ वे अब सामाजिक सरोकारों के मामले में भी पहल करने लगी हैं, जिला कार्यक्रम प्रबंधक कार्यालय से प्राप्त सफलताओं की इन दो सफल गाथाओं को ही देखें-
बात है नैगुवा लोकेशन के ग्राम गोराखास में महात्मा गांधी स्वसहायता समूह की है। इस समूह में वंशकार अहिरवार समाज की महिलायें शामिल हैं। समूह का गठन माह दिसम्बर में हुआ था। जिसमें कुल 20 महिलायें हैं। इस समूह की महिलाओं की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब है। फिर भी यह 5 रू. प्रति सप्ताह के हिसाब से अपनी नियमित बचत जमा कर रही हैं। अभी समूह की बचत 1200 रू के लगभग एकत्र हो पायी थी कि समूह में लेनदेन के बारे में चर्चा चल रही थी। उसी समय समूह की सदस्य भगवती देवी जिसके पास आर्थिक तंगी के कारण घर का खर्च चलाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है । उसके मन में बिचार आया कि यदि समूह से कुछ राशि उधार लेकर साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली जाय तो कुछ आमदनी होने लगेगी इसके लिये उसने समूह में 1000 रू. उधार लेने के लिये अपना प्रस्ताव रखा जिस पर समूह सदस्यों नें बिचार करने के बाद अगले सप्ताह उसे 1000 रू. 10 सप्ताह के लिये समान किस्त पर ऋण उपलब्ध करा दिया जिससे उसने साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली और काम शुरू कर दिया जिससे अभी शुरुआत में 20 से 25 रू प्रतिदिन की आमदनी होने लगी है और भगवती बाई के साथ समूह सदस्य सभी खुश हैं ।
ब्रजेश सिंह
लोकेशन समन्वयक - नैगुवां जिला - टीकमगढ़

ह बात है मड़िया लोकेशन के ग्राम कछियाखेरा की, यहां पर मार्च के प्रथम सप्ताह में शारदा स्वसहायता समूह की बैठक सुबह 8 बजे प्रारंभ हुई थी । इसी बैठक में उस दिन लोकेशन समन्बयक सुनील रावत मौके पर पहुंच गये बैठक में चार महिलायें उस समय उपस्थित नहीं थीं । इसका कारण जब समूह की महिलाओं से जाना गया तो उन्होंने बताया कि कि हमारे खिरक (परदेबारा) में बच्चों को छोटी माता निकली हैं जिसमें बुखार के साथ लगातार खांसी आ रही है बच्चे खाना भी नहीं खा रहे हैं जिससे समूह की महिलायें समूह की बैठक में नहीं आ सकीं । इस पर सुनील रावत द्वारा बताया गया कि यह खसरा का रोग है तथा इसके बारे में विस्तार से बताया तथा समूह ने उसी समय प्रेस बिज्ञप्ति तैयार की तथा इस बिज्ञप्ति को नई दुनिया प्रेस में दिया गया । जिसके प्रकाशित होते ही सामुदायिक स्वास्थय केन्द्र पृथ्वीपुर की पूरी टीम गांव में पहुंची जो जाकर सबसे पहले समूह की सदस्यों से मिली इसके बाद समूह के सदस्यों के सहयोग से पूरे गांव के सभी पीड़ित बच्चों का इलाज किया गया। इस घटना के बाद गांव की सभी महिलाओं को प्रेरणा मिली तथा समूह का महत्व समझ में आ गया।
सुनील रावत
लोकेशन समन्वयक - मड़िया,जिला - टीकमगढ़
(इस तरह की सफलता की कहानियों को अपने लोकेशन स्टाफ के साथ जरूर बांटे जो होंसला बढ़ने के साथ साथ नया रास्ता भी दिखाती हैं । इन कहानियों को सभी के साथ बांटने के लिए जिला कार्यालय को धन्यवाद और बधाई )

टीकमगढ़ - जरूरत नीचे तक जाने की

वास्तव में टीकमगढ़ को सुनहरे भूतकाल का क्षेत्र के नाम से जाना जाता है जो गलत भी नहीं है। प्रदेश के उत्तर में बसा ये जिला अपनी निहायत ही खूबसूरत भौगोलिक रचना और ठेठ अंदाज के लिये जाना जाता है। जिले में पिछड़ा वर्ग , अनुसूचित जाति के परिवारों की संख्या अधिक है । पिछड़ा वर्ग में लोधी समाज एवं अनुसूचित जाति में अहिरवार समाज के लोग बहुतायत में हैं ।
जिलें में सामंतवाद एवं ऊँच-नीच की भावना अक्सर देखने को मिलती है । सम्मान के नाम पर दलित वर्ग सम्पन्न लोगों के पैर छूता नजर आता है । यहां पर महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है । कड़ी धूप में मजदूरी करना, घरेलू काम करना महिलाओं की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है । मजबूरीवश अनेकों महिलाऐं मजदूरी के लिए दिल्ली , आगरा जैसे शहरों में जाती रहती है । यही स्वास्थ्य से जुड़ी भयावह स्थिति की एक खास वजह है, जो अपने साथ HIV/Aids तथा STD व अन्य शारीरिक व मानसिक रोगों को साथ लाती है। इसके साथ ही पर्दा प्रथा यहां काफी गहरे तक जड़ जमाये हुये है । स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर भी जागरूकता का नितांत अभाव है यही कारण है कि जिले में मातृ मृत्यु दर (876 प्रतिलाख) एवं शिशु मृत्युदर ( 93 प्रति हजार) अन्य की तुलना में अधिक है । मातृ मृत्यु दर के मामले में सर्वाधिक गंभीर स्थिति पृथ्वीपुर ब्लाक की है जहां प्रति लाख प्रसव पर 1381 महिलाऐं मौत का शिकार बनती है वही शिशु मृत्युदर 114 प्रति हजार है । यह अत्यंत चिंता का विषय है ।जिले में महिलाओं की जगह अभी चार दिवारी तक सिमटी नजर आती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उन्होंने बाहरी दुनिया देखी ही नहीं है । इसके विपरीत स्वशक्ति कार्यक्रम के तहत बनाये गये स्वसहायता समूहों से जुड़ी रही महिलाओं में जागरूकता देखी जा सकती है लेकिन उनके लिए भी आजीविका संबंधी कार्यक्रम संचालित करने की आवश्यकता है ।अन्य स्वसहायता समूह जैसे एस0जी0एस0वाई0 से जुड़ी महिलाओं के सोच विचार में बदलाव बहुत कम नजर आता है । पैक्स परियोजना में गठित समूह की महिलाऐं केवल आर्थिक रूप से थोड़ा सक्षम नजर आती है ।
साक्षरता जैसे विषय पर जिले में कुछ भी हलचल दिखाई नहीं देती है । गाँवों में संचालित पुस्तकालय संचालकों को सालों से मानदेय नहीं मिला है जो उनकी साक्षरता के कार्य में रूचि न होने का कारण है । जिले में पुरूष साक्षरता एवं महिला साक्षरता में लगभग 28 % का अंतर है।
ग्राम पंचायत में भागीदारी के विषय में जिले की महिलाओं की उपस्थिति नगण्य सी है, वे तो इस बारे में न तो सोच सकी है और न जान सकी हैं । तेजस्विनी कार्यक्रम के तहत बनाये गये समूहों में इस बाबत कार्य किया जा रहा है।
निरंतर बढ़ता लिंगानुपात भी जिले के लिये चिंता का विषय है यहां प्रति हजार पुरूषों पर 886 महिलाऐं है । इस विषय में कोई विशेष कार्यक्रम संचालित नहीं हुआ है । जिले के कुछ गांवों में तो उड़ीसा से महिलाओं को लाकर शादी की गई है जो अत्यंत चिंता का विषय है । तेजस्विनी कार्यक्रम के दौरान इस विषय पर भी कार्य किया जाना चाहिये।
जिले की सबसे चिंतनीय स्थिति खुले में शौच जाने से संबंधित है । विकल्पहीनता के चलते खुले में शौच महिलाओं की मजबूरी है । इसके साथ ही दूर से पानी लाना भी महिलाओं के लिए दुष्कर कार्य है लेकिन समाज के पूर्वाग्रहों के कारण यह काम महिलाओं को ही करना पड़ रहा है । बाल-विवाह जैसी गंभीर समस्या से भी जिला अछूता नहीं है । यहां अनेकों बालिकाऐं कम उम्र में ब्याह दी जाती है । जिससे उनका विकास अवरूद्ध हो जाता है ।
तेजस्विनी कार्यक्रम में महिला समानता के लिए किए जा सकने वाले प्रयास :-
ग्राम पंचायतों में भागीदारी एवं इससे संबंधित प्रशिक्षण /जानकारी देना सबसे पहली जरूरत है । यदि महिलाऐं इसके विषय में जानेगी, उसके बाद ही हम सत्ता में भागीदारी या आरक्षण का लाभ लेने की बात कह सकेंगें ।
महिला स्वास्थ्य की ग्रामीण क्षेत्रों में अत्याधिक अनदेखी की जाती है । यही कारण है कि महिलाऐं कमजोर हो जाती है और बीमारियों की शिकार हो जाती है । इस हेतु जागरूकता के लिए कार्य करने एवं स्वास्थ्य विभाग से प्रभावी समन्वय करने की आवश्यकता है । महिलाओं को आर्थिक रूप से आगें बढ़ाने में स्व-सहायता समूह प्रमुख भूमिका निभा सकते है । लेकिन इसका सही क्रियान्वयन अन्य योजनाओं में नहीं हो पा रहा है । समूह बनाऐ जाते है, जो कुछ समय बाद टूट जाते है । अतः तेजस्विनी में इसका ध्यान रहते हुए महिलाओं के लिए आजीविका के बेहतर अवसर उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता है ताकि वें आर्थिक रूप से सक्षम हो सकें ।
साक्षरता में आमतौर पर महिलाओं की रूचि सामयिक होती है । कुछ दिन उत्साह दिखाने के बाद वें इससे विमुख हो जाती है । अतः साक्षरता में ऐसा प्रयास हो कि उनका पाठ्यक्रम चित्रात्मक एवं रूचिकर हो ।
ग्रामीण क्षेत्र में जन समुदाय के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक शासन की विभिन्न योजनाऐं संचालित है।जिनमें से अनेकों योजनाऐ महिलाओं से संबंधित है और पुरूषों के समान बराबरी का एहसास कराती है । इन योजनाओं का लाभ लेना, सिखाने का प्रयास सुव्यवस्थित रणनीति के तहत किए जाने की आवश्यकता है ।
लिंगानुपात में आ रही असमानता को दूर करने की रणनीति बनाने की आवश्यकता है । जिसके तहत महिला एवं पुरूष दोनों के लिए जागरूकता कार्यक्रम हों ।
घरेलू हिंसा गरीब परिवारों में बहुत ज्यादा होती है । लेकिन ये घटनाएं घर तक ही सिमट कर रह जाती है । अतः रणनीति इस तरह हो जो पीड़ित महिला को हिंसा से बचा सकें । इस हेतु विषय विशेषज्ञों की एक प्रशिक्षित टीम समूहों में जाकर प्रशिक्षण एवं सकारात्मक परामर्श दे सकें ।
महिलाओं को कानूनी साक्षरता का भी सरलतम तरीके से प्रशिक्षण एवं परामर्श दिए जाने की आवश्यकता है ।
महिलाओं के घरेलू काम के घण्टों को कभी भी गिना नहीं जाता है जबकि वह पुरूषों से अधिक श्रम करती है । अतः कड़ी मजदूरी में कमी हेतु छोटे-छोटे कम लागत के कृषि यंत्र, कुओं पर पुली लगाना, उन्नत चूल्हों , सोलर कुकर का इस्तेमाल सिखाना, घरेलू कार्यों में पुरूषों की भागीदारी बढ़ाने के प्रयास उसके श्रम में कमी ला सकते है ।
श्री सुशील वर्मा
जिला कार्यक्रम प्रबंधक
टीकमगढ़