इसके पहले अध्याय में 'मानवाधिकार का वैश्विक परिदृश्य' बेहतर तरीके से समझाने का प्रयास किया गया है। मानवाधिकारों का उद्भव कहाँ से हुआ, इसकी ऐतिहासिक और वैचारिक पृष्ठभूमि को भी बखूबी समझाया गया है। इसमें 1215 ई. में आया मैग्नाकार्टा, राइट्स ऑफ मैन एण्ड सिटीजन जो 1789 में फ्रांस की क्रांति के बाद आया, जैसे महत्वपूर्ण घोषणापत्रों का उल्लेख किया गया है। इन सभी को मानवाधिकारों की लंबी संघर्ष यात्रा में मील का पत्थर माना जा सकता है।
'भारत में मानवाधिकार' इस पुस्तक का द्वितीय अध्याय है। इसमें आधुनिक भारत का संविधान निर्मित होने तक भारत में मानवाधिकारों के संबंध में हुए महत्वपूर्ण प्रयासों को समझाया गया है। भारत के नवीन संविधान में मानव अधिकारों के विषय में विस्तृत जानकारी इस पुस्तक से मिलती है।
मानवाधिकार आयोग के ढाँचे, कार्य व शक्तियों की जानकारी भी दी गई है। तृतीय अध्याय में 'मानवाधिकारों में महिला संदर्भ' व्याख्यायित किया गया है। लेखिका ने महिला अधिकारों के वैचारिक इतिहास को खंगालते हुए प्लेटो, मिल और नेपोलियन के विचारों को उद्धृत किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ व महिलाएँ, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दस्तावेज, महिलाओं के अधिकारों की अभिवृद्धि व संरक्षण संबंधी प्रावधान, महिलाओं से भेदभाव की समाप्ति पर अधिनियम व विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की भी जानकारी दी गई है।
चतुर्थ अध्याय में भारत में महिला मानवाधिकारों के परिदृश्यों पर चर्चा है। इसमें भारतीय संविधान में महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान, विकासात्मक योजनाएँ, विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में महिलाओं को सशक्त करने के प्रयासों का उल्लेख है। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता में महिलाओं की स्थिति और महिला आयोग की जानकारी भी दी गई है।
पंचम अध्याय इन सैद्धांतिक सुरक्षाओं की व्यावहारिक स्थिति पर केंद्रित है। इसमें आँकड़ों के माध्यम से वास्तविक स्थिति को समझाने का प्रयास किया गया है, साथ ही विश्व और भारतीय महिलाओं की तुलनात्मक स्थिति भी प्रस्तुत की गई है। षष्टम् अध्याय इस व्यावहारिक विघटन हेतु उत्तरदायी तत्वों को दर्शाता है और सप्तम अध्याय उपायों की छानबीन और निष्कर्ष देता है। महिलाओं और मानवाधिकार पर विशेष समझ के लिए अवश्य पढ़ें.
लेखिका : डॉ. ममता चंद्रशेखर
प्रकाशक : मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी,
मूल्य : 65 रु
source - web duniya
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