‘महिला अधिकारों से जुड़ी संधि ने भारत में बदली मानसिकता’

संयुक्त राष्ट्र। उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुजाता मनोहर ने कहा है कि महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के भेदभाव खत्म करने का आह्वान करनेवाली संयुक्त राष्ट्र संधि भारत में भी महिलाओं के खिलाफ हर क्षेत्र में व्याप्त भेदभाव की मानसिकता को बदलने में मददगार हुई है ।
संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के भेदभाव को दूर करने संबंधी संधि सीईडीएडब्लू की 30वीं वषर्गांठ के अवसर पर सुजाता ने 1997 के विशाखा बनाम राजस्थान सरकार के बीच के अहम मुकदमे का हवाला देते हुए यह बताया कि संधि ने किस तरह उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान में दिए गए ‘समानता के अधिकार’ पर अपना प्रभाव डाला ।
सुजाता ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि शिक्षा और आर्थिक अवसर महिला सशक्तिकरण के अहम क्षेत्र हैं और इन दोनों क्षेत्रों में यौन शोषण से महिलाओं के समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है। उन्होंने कहा कि संभवत: यही कारण है कि 1997 में उच्चतम न्यायालय ने यौन शोषण संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई करने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि कार्यस्थल पर यौन शोषण महिलाओं के समानता के अधिकार का उल्लंघन है । भारत में इससे जुड़ा कोई कानून नहीं होने पर न्यायालय ने यौन शोषण से बचाव और इससे जुड़े मामलों पर कार्रवाई के लिए दिशानिर्देश भी दिए थे।
मनोहर ने कहा कि यह पहला मौका था जब शीर्ष न्यायालय ने संयुक्त राष्ट्र की इस संधि:सीईडीएडब्लू: का इस्तेमाल समानता और गैर-भेदभाव के मौलिक अधिकारों के फलक की व्याख्या में किया था। सुजाता ने अपने संबोधन में कहा कि भारत के उदाहरण का इस्तेमाल हाल ही में बांग्लादेश में भी किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1979 में इस संधि सीईडीएडब्लू को अपनाया और 1981 में इसे लागू किया था । साभार सहारा संमय

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