चने की दो नई किस्में

सब्जी के रूप में अगैती फसल के हर चने की सप्लाई मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों से ही होती है। हैदराबाद के अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान ने दो नई किस्में विकसित की हैं जिनकी बुवाई उत्तरी राज्यों में अगैती फसल के रूप में हो सकती है।
देश में चने खासकर हरे चने (छोलिया) की फसल पहले दक्षिणी राज्यों से आती है। उत्तरी राज्यों की हर चने की फसल इसके बाद ही बाजार में पहुंच पाती है। गौरतलब है कि ज्यादातर अगैती चने की खपत छोलिया (हर चने) के रूप में ही जाती है। मुख्य फसल और पछैती फसल का चना सुखाया जाता है और काले (सूखे) चने के रूप में वर्षभर इस्तेमाल होता है। इस तरह अभी बाजार में सब्जी के रूप में हर चने की अभी मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों का ही बिकता है।
अगैती फसल होने के कारण दक्षिणी राज्यों के किसान बेहतर मूल्य पाने में सफल हो जाते हैं लेकिन उत्तरी राज्यों के किसानों की फसल बाजार में जब पहुंचती है, तब सप्लाई पूर जोरों पर शुरू हो चुकी होती थी। इस वजह से चने के मूल्य काफी गिर चुके होते हैं। हैदराबाद स्थित अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) ने चने की दो अगेती किस्में आईसीसीवी-96029 और आईसीसीवीवी-96030 विकसित की हैं। ये किस्में उत्तरी राज्यों की जलवायु के लिए अनुकूल हैं। इन किस्मों की बुवाई करके उत्तरी राज्यों के किसान भी अगैती बुवाई करके चने की जल्दी पैदावार कर सकते हैं।
अगैती फसल वाले चने की खपत उस समय भी खूब रहती है जब वह सूखने से पहले हरा होता है। सब्जी के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। हर दानों में अमीनो अम्लों खनिज लवणों की अधिक मात्रा पायी जाती है। इसके अलावा हरा चना (छोलिया) फलीदार फसल होने के कारण वातावरण की नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण कर जमीन को उपजाऊ बनाने में भी सहायक है। छोलिया की खेती कम वर्षा और विपरीत परिस्थितियों वाली जलवायु में आसानी से की जा सकती है। चने की अपेक्षा छोलिया की फसल में कटुआ कीट का भी कम प्रकोप होता है। इसकी फसल से प्राप्त हरा चारा भी पशुओं के लिए स्वादिष्ट, पौष्टिक और ताकतवर है।
छोलिया की मांग दिसंबर और जनवरी में सबसे अधिक रहती है, लेकिन इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में छोलिया की सप्लाई नहींे होती है। ऐसे में छोलिया की नई किस्में अगेती होने के कारण किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। इस समय किसान छोलिया को बेचकर अधिक लाभ कमा सकते है। हालांकि इस दौरान दक्षिण भारत में छोलिया की उपलब्धता की कोई समस्या नहीं है। इसकी बुवाई उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में खरीफ की विभिन्न फसलों जैसे अगेती धान, मक्का, मूंग, उड़द और सोयाबीन की कटाई के बाद कर सकते हैं।
नए किस्मों की उपज
आईसीसीवी-96029 किस्म के हर चने की औसत उपज करीब नौ टन प्रति हैक्टेयर और आईसीसीवी -96030 की पैदावार करीब सात टन प्रति हैक्टेयर रहती है। इस तरह आईसीसीवी-96029 की कुल पैदावार पुरानी किस्म आईसीसीवी के मुकाबले करीब 30 फीसदी अधिक है। इसके पौधों की ऊंचाई, शाखाएं, प्रति पौधा फलियों की संख्या और 1,000 हर दानों का भार भी आईसीसीवी-30 की तुलना में अधिक है।

बुवाई का समय
दोनों किस्मों की बुवाई 30 सितंबर से लेकर 15 अक्टूबर बीच कर देनी चाहिए। बुवाई के 35 दिन बाद पहली सिंचाई और 80 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। छोलिया की खेती में फास्फोरस की मात्रा करीब 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर को सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में बुवाई के समय करनी चाहिए। इसके अलावा फसल में नाइट्रोजन की एक समान मात्रा 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डालनी चाहिए।
- रामवीर सिंह

बिजिनेस भास्कर से

2 comments:

Unknown said...

Sir

I want Iccv 96029 gram seeds please help

Unknown said...

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