आत्मसम्मान

टिनडिनी गॅाव की एक और कहानी यह बताती है कि जाति प्रथा से कैसे लोग आपस में एक दूसरे को सह नहीं पाते है। समूह ने लोगों के मन से यह भावना दूर करने का प्रयास किया है। यह समझाया है कि अगर सब लोग मिल जुल कर काम करें तो हर काम आसान हो जाता है।

छतरपुर के पास एक बड़ा गाॅव है जिस का नाम ’टिनडिनी’ है। यहॅा लगभग छः सौ परिवार रहते हैं जिनमें सभी जाति के लोग रहते हंै। दो स्व सहायता समूह की सदस्यायें दलित जाति की हैं और एक समूह में सब तरह के लोग हैं। एक बार तीनों समूहों की सामूहिक बैठक उसी गाॅव में रखी गयी।बैठक के दौरान एक समूह की सदस्य बिल्लूबाई जो दलित जाति की हैं जमीन पर बैठे बैठे उनके पैरों में दर्द होने लगा तो बिल्लू बाई पास में ही रखे एक स्टूल पर बैठ गई । इस बात को देखते ही बैठक में तुरन्त हलचल मच गई कि दलित जाति के लोगों की बैठने की हिम्मत कैसे कर सकती है? क्योंकि दलित जाति के लोगों की बैठने की जगह तो जमीन पर थी । उच्च जाति के सदस्यों व आम लेागेां ने इस पर आपत्ति ली। बात तत्काल तो संभाल ली गयी लेकिन यह घटना दलित महिलाओं के मन में बैठ गयी इस पर दलित सदस्यों ने अपनी आवाज बार बार उठायी उनका साथ दलितों के साथ गांव के समझदार लोंगों ने भी दिया। दलित महिलाओं का कहना था कि बिल्लू बाई ने कोई गलत काम नहीं किया था।इस पर ग्राम पंचायत की बैठक बुलायी गयी और सबने देखा कि दलित महिलायें अपने मत में एकजुट थीं। उच्च जाति की सदस्यों ने अपनी हार मान ली और धीरे-धीरे अब दोनों तरफ की महिलाओं में अच्छे सम्बन्ध हैं। वे एक दूसरे की बैठक में भाग लेती हैं। अब उन में छूआछूत की भावना नहीं है। दलित महिलायें भी अब सर उठा कर जीना सीख गई हैं। इस घटना ने एक बडे़ सामाजिक बदलाव की नींव टिनडिनी ग्राम में रखी।( अन्य कार्यक्रमों का अनुभव )

1 comment:

Vinashaay sharma said...

छुआछुत के विरुध अच्छा प्रयास ।