कारपोरेट घरानों को चुनौती देता एक देसी उद्यम - लिज्जत पापड़

-विपिन दिवासर
एक कहावत है कि ‘सौ मील का सफर पहले कदम से शुरू होता है।’ इस कहावत को श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ ने चरितार्थ करके दिखाया है जो शून्य से शुरू होकर आज शिखर तक पहुंच गया है। मात्र 80 रूपए के कर्ज की राशि से की गई शुरुआत वर्तमान समय में 301 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष की बिक्री तक पहुंच गई है।
मुंबई के गिरगांव में रहने वाली सात महिलाओं द्वारा पापड़ बनाने की पहल आज पूरे देश में लघु उद्योगों की सफलता का एक ज्वलंत उदाहरण है जो पिछले 40 वर्षों से उत्पादन की गुणवत्ता को आधार मानते हुए आगे बढ़ रहा है। लिज्जत पापड़ समूह ने देश में लघु उद्योग के चरमोत्कर्ष का एक उदाहरण पेश किया है। हालांकि भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने वाली इस समूह की महिलाएं अपने स्तर पर पापड़ बनाती हैं, फिर भी लिज्जत पापड़ ने इसे एक उद्योग बनाकर विश्वस्तर तक पहुंचा दिया है। इस की शुरूआत देश के औद्योगिक राज्य मुंबई के गिरगांव से हुई। मात्र 80 रूपए का कर्ज लेकर गिरगांव की सात महिलाओं ने अपने स्तर पर पापड़ बनाने का कार्य शुरू किया। ये महिलाएं इस काम के लिए प्रशिक्षित नहीं थी, परंतु उनके अंदर एक अद्भुत दृढ़ता थी। उन्होंने अपने सामान्य गुणों को विकसित किया और यही उनका हथियार बन गया। उन्होंने अपने घरों की छतों को मुख्य कारखाना बनाया। वही पहल आज चालीस वर्षों का लंबा सफर तय कर विश्वस्तर तक पहुंच गई है। वर्तमान में इस समूह की अधयक्ष ज्योति नाइक हैं जो आज भी लिज्जत पापड़ के चालीस वर्ष पहले निर्धारित किए गए सिद्धांतों पर चलकर इसके विकास में जुटी हुई हैं। लेकिन इस लंबे अंतराल में समूह का स्वरूप काफी बदल गया है।
अब लिज्जत समूह के उत्पादों का उत्पादन मुंबई की मात्र सात छतों पर न होकर देश के कई हिस्सों में होता है। कोई भी सामान्य महिला इस समूह की सदस्य बन सकती है। इसके लिए इच्छुक महिला के आवास का निरीक्षण किया जाता है। फिर उसे उत्पादन की प्रक्रिया से अवगत कराया जाता है। लिज्जत पापड़ के उत्पादन में मुख्य रूप से आटा गूंदना, लोई बनाना, पापड़ बनाना, सुखाना तथा पैंकिग की प्रक्रियाएं हैं। इन कार्यों को महिलाओं की क्षमतानुसार बांट दिया जाता है। अभी तक समूह की मुंबई में 12 हजार, शेष महाराष्ट्र में 22 हजार तथा गुजरात में करीब 7 हजार सदस्य हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह एक रोचक तथ्य है कि आधुनिकीकरण के इस दौर में भी लिज्जत समूह ने मशीनीकरण का सहारा नहीं लिया है। यही वजह है कि यह समूह आज देश के हजारों घरों को रोजगार दे रहा है।
लिज्जत पापड़ समूह की महिलाओं द्वारा आटा गूंधने, लोई बनाने, पापड़ बनाने, सुखाने तथा पैंकिग कर देने के बाद इसके वितरण की जिम्मेदारी वितरकों की होती है। समूह द्वारा चयनित वितरक को एक लाख पचास हजार रूपए की राशि बतौर गारंटी जमा करनी होती है। साथ ही समूह द्वारा वितरक की जगह व गोदाम आदि का मुआयना किया जाता है ताकि उत्पाद को वितरित करने की किसी भी प्रक्रिया में लापरवाही न हो सके। समूह के अभी तक मुंबई में 32 वितरक हैं जो रोजाना करीब 100 डब्बों (एक डिब्बे में 13.6 कि.ग्रा. पापड़ होता है) को आम आदमी तक पहुंचाते हैं। इसके लिए ये थ्री व्हीलर तथा अपने सेल्समेनों का सहारा लेते हैं। कुछ इसी प्रकार की प्रक्रिया लिज्जत पापड़ द्वारा अपने उत्पाद को निर्यात करने में भी अपनाई जाती है। समूह के उत्पाद मुख्यत: अमेरिका, ब्रिटेन सिंगापुर, हांगकांग, हालैंड तथा मध्यपूर्वी देशों में निर्यात किए जाते हैं। इससे समूह को लगभग 10 करोड़ रूपए की आय प्राप्त होती है। यह समूह की आमदनी का 30 से 35 प्रतिशत होता है।
लिज्जत पापड़ समूह द्वारा शून्य से शिखर तक पहुंचने के सफर का मूल राज इसकी शक्तियों के विकेन्द्रीकरण में है। हरेक केंद्र की देखरेख करने के लिए संचालिका या सुपरवाइजर नियुक्त है लेकिन संस्था की कार्यप्रणाली कुछ ऐसी है कि प्रत्येक सदस्य अपने स्तर पर पहल कर सकता है, निर्णय ले सकता है। साथ ही प्रत्येक सदस्य को वीटो पावर होता है। सभी निर्णय हमेशा सर्वानुमति से ही लिए जाते हैं। एक सदस्य की आपत्ति से भी प्रस्ताव निरस्त हो सकता है।
इसी प्रकार उत्पादन भी किसी एक केंद्रीय स्थान पर न होकर सैकड़ों-हजारों घरो में होता है। उत्पाद और उसके पैकिंग की गुणवत्ता के निरिक्षण की व्यवस्था भी हरेक केंद्र पर होती है। इस प्रकार उत्पादन से लेकर उसकी पैकिंग, संग्रह तथा वितरण और लाभ तक की जिम्मेदारी शाखा केंद्र की ही होती है। इसके लिए कोई केंद्रीकृत व्यवस्था नहीं बनाई गई है। इस प्रकार प्रबंधन समस्याओं का समाधान करने की बजाय उन समस्याओं को उतना ही नहीं होने दिया गया है।
विकेंद्रीकरण की इन व्यवस्थाओं के बाद भी कुछ व्यवस्थाएं केंद्रीय स्तर पर की जाती हैं। जैसे, कच्चा माल (चावल, उड़द, मसाले आदि) मुंबई में खरीदे जाते हैं। फिर उनकी पिसाई के लिए समूह की अपनी दो मिलें हैं। एक नवी मुंबई के वाशी में और दूसरी नासिक में। इसके पीछे उनका तर्क है कि अलग-अलग स्थानों पर चावल-दाल आदि की गुणवत्ता अलग-अलग होती है, स्थानीय स्तर पर कच्चा माल खरीदने पर उत्पाद की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। और चूंकि सारा कच्चा माल मुंबई में खरीदा जाता है, इसलिए अपनी मित्रों में पिसवाना सस्ता होता है। इसी प्रकार उत्पाद की कीमत भी एक ही स्थान से तय की जाती है। इसलिए भारत भर में लिज्जत पापड़ 16.25 रूपए प्रति किलो ही बिकता है। लिज्जत पापड़ समूह की दूसरी शक्ति है लोगों को महत्व देना।
समूह अपनी प्रत्येक सदस्य जो कि अनिवार्यत: महिला ही होती है, को काफी महत्व देता है। महिलाओं के पारिवारिक दायित्वों और समय व समाज के दबावों को वह उनकी कमी नहीं, बल्कि एक शक्ति मानता है। इसलिए लिज्जत ने आज घर में रहकर काम करने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को काफी प्रोत्साहित किया है। लोगों को महत्व देने और उनकी समस्याओं को समझने के गुण के कारण लिज्जत आज एक मजबूत और स्थिर व्यावसायिक प्रारूप बन सका है। लोगों के महत्व और स्वावलंबन के अपने मुख्य उद्देश्य के कारण ही विकास और यांत्रिकीकरण के वर्तमान दोह में भी लिज्जत पापड़ उत्पादन के लिए यंत्रों का उपयोग नहीं करता। सभी सदस्यों को यहां एक समान भाव से देखा जाता है और इसीलिए कौन क्या काम कर रहा है या कौन कितना वरिष्ठ है, इस पर ध्यान दिए बिना लाभ भी सभी को समान रूप से बांटा जाता है। एक 21 सदस्यीय समिति यह तय करती है कि लाभ को किस रूप में बांटा जाए। सामान्यत: 5 या 10 ग्राम के सोने के सिक्के खरीद कर बांटे जाते हें। हरेक केंद्र पर लाभ की गणना की जाती है और उसे सदस्यों में बांटा जाता है।
लिज्जत पापड़ समूह की अधयक्ष ज्योति नाईक कहती हैं कि संस्था को बांधने वाली प्रमुख ताकत है आत्मगौरव और आत्मसम्मान का भाव। यह कोई गरीब और असहाय महिलाओं की संस्था नहीं है। लिज्जत पापड़ भी एक व्यवसाय है, केवल इसकी संरचना अलग है। इसमें किसी प्रकार की सहानुभूति, दया या दान की भावना नहीं है।

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