स्कूल की व्यवस्थाओं को बदलने का संकल्प लिया समूह सदस्यों ने
पन्ना जिले के गुनौर विकासखण्ड में छोटा सा ग्राम है ‘‘बम्हौरी’’ । लगभग डेढ़ सौ परिवारों वाले इस ग्राम के ग्रामीण मुख्यतः खेतिहर मजदूरी एवं मजदूरी पर ही निर्भर हैं। घर गृहस्थी एवं चूल्हा चौका सम्भालती महिलाएं कभी कभार मजदूरी पर जाकर परिवार की आर्थिक जरुरतों को पूरा करने मे सहयोग करतीं लेकिन अक्सर ऐसा होता कि जब भी कोई बीमार हो गया या मेहमान आ गया या त्योहार आया घर मे खर्च करने के लिए फूटी कौड़ी भी न होती। ऐसे मे राजपूत मुहल्ले की कुछ महिलाओं को तेजस्विनी कार्यक्रम की जानकारी हुई एवं आपसी सलाह करके 17 सखी सहेलियों ने ठान लिया मुष्किलों एवं परेषानियों से स्वयं ही लोहा लेने एवं कुछ नया कर गुजरने का। इस तरह गठित हुआ ‘‘रजनी तेजस्विनी महिला स्वसहायता समूह’’। प्रत्येक बैठक मे समूह की समस्त गतिविधियां संचालित करने के साथ- साथ किसी एक सामाजिक समस्या या व्यवस्था पर अवष्य ही चर्चा होती ऐसे ही नीम चबूतरे पर आयोजित बैठक मे मुद्दा था बच्चों की पढ़ाई का राधा बाई का कहना था मेरे बच्चे एक घण्टे मे ही स्कूल से लौट आतें हैं तो मीरा का कहना था कि मेरी बेटी को स्कूल मे खाना नही मिलता और पार्वती बोली कि मास्टर साहब समय से स्कूल नही आते। तय हुआ कि क्यों न आज स्वयं स्कूल मे चलकर देखा जाए कि हमारे बच्चे आखिर किस तरह पढ़ लिख रहे हैं और लगभग दस मिनट मे ही महिलाओं का काफिला पहुंच गया स्कूल मे। स्कूल का नजारा देखकर सब के सब चकित! मास्टर साहब कक्षाओं मे नही, बच्चे धूल मे खेल रहे थे और लड़झगड़ रहे थे, किताबें फैली पड़ी थीं और पानी आदि की कोई व्यवस्था नही थी। स्कूल स्टाफ ने पहली बार स्कूल मे इतनी महिलाओं को देखा तो उन्हे सूझा ही नही कि वे क्या करें, फिर आनन - फानन मे सभी कक्षाओं की ओर भागे। महिलाओं ने एक - एक क्लास को देखा, मध्यान्न भोजन व्यवस्था देखी, पानी पीने का स्थान देखा और पाया कि सब कुछ अव्यवस्थित है यहां तक कि स्कूल मे छात्र छात्राओं के लिए पेषाबघर भी नही है। स्कूल की सारी अव्यवस्थाओं के लिए स्कूल स्टाफ विस्तृत बात की एवं अगले भ्रमण तक व्यवस्थाओं को सुधारने का निवेदन किया। स्कूल स्टाफ को महिलाओं का व्यवस्थाओं को सुधारने का यह तरीका काफी प्रभावषाली लगा एवं उन्होंने व्यवस्थाओं को सुधारने का वचन दिया। समूह की अगली बैठक मे महिलाओं ने पुनः स्कूल का भ्रमण किया और पाया कि व्यवस्थाएं पूर्णतया ठीक तो नही हुईं लेकिन आंषिक सुधार अवष्य आया है जैसे कि षिक्षक समय पर स्कूल आ चुके थे कक्षाएं चल रहीं थीं और मध्यान्न भोजन बनाया जा रहा था। महिलाओं को पूर्ण सन्तुष्टि तो नही मिली लेकिन अपनी संगठन शक्ति की सफलता का विष्वास जरुर हो गया। इसी विष्वास के दम पर वे कहतीं हैं कि हम भले ही न पढ़ सके पर बच्चों को जरुर पढ़ाएंगें और धीरे - धीरे एक दिन जरुर वे गांव की सारी व्यवस्थाओं को सुधार पाने मे सफल हो सकेंगीं।
पन्ना जिले के गुनौर विकासखण्ड में छोटा सा ग्राम है ‘‘बम्हौरी’’ । लगभग डेढ़ सौ परिवारों वाले इस ग्राम के ग्रामीण मुख्यतः खेतिहर मजदूरी एवं मजदूरी पर ही निर्भर हैं। घर गृहस्थी एवं चूल्हा चौका सम्भालती महिलाएं कभी कभार मजदूरी पर जाकर परिवार की आर्थिक जरुरतों को पूरा करने मे सहयोग करतीं लेकिन अक्सर ऐसा होता कि जब भी कोई बीमार हो गया या मेहमान आ गया या त्योहार आया घर मे खर्च करने के लिए फूटी कौड़ी भी न होती। ऐसे मे राजपूत मुहल्ले की कुछ महिलाओं को तेजस्विनी कार्यक्रम की जानकारी हुई एवं आपसी सलाह करके 17 सखी सहेलियों ने ठान लिया मुष्किलों एवं परेषानियों से स्वयं ही लोहा लेने एवं कुछ नया कर गुजरने का। इस तरह गठित हुआ ‘‘रजनी तेजस्विनी महिला स्वसहायता समूह’’। प्रत्येक बैठक मे समूह की समस्त गतिविधियां संचालित करने के साथ- साथ किसी एक सामाजिक समस्या या व्यवस्था पर अवष्य ही चर्चा होती ऐसे ही नीम चबूतरे पर आयोजित बैठक मे मुद्दा था बच्चों की पढ़ाई का राधा बाई का कहना था मेरे बच्चे एक घण्टे मे ही स्कूल से लौट आतें हैं तो मीरा का कहना था कि मेरी बेटी को स्कूल मे खाना नही मिलता और पार्वती बोली कि मास्टर साहब समय से स्कूल नही आते। तय हुआ कि क्यों न आज स्वयं स्कूल मे चलकर देखा जाए कि हमारे बच्चे आखिर किस तरह पढ़ लिख रहे हैं और लगभग दस मिनट मे ही महिलाओं का काफिला पहुंच गया स्कूल मे। स्कूल का नजारा देखकर सब के सब चकित! मास्टर साहब कक्षाओं मे नही, बच्चे धूल मे खेल रहे थे और लड़झगड़ रहे थे, किताबें फैली पड़ी थीं और पानी आदि की कोई व्यवस्था नही थी। स्कूल स्टाफ ने पहली बार स्कूल मे इतनी महिलाओं को देखा तो उन्हे सूझा ही नही कि वे क्या करें, फिर आनन - फानन मे सभी कक्षाओं की ओर भागे। महिलाओं ने एक - एक क्लास को देखा, मध्यान्न भोजन व्यवस्था देखी, पानी पीने का स्थान देखा और पाया कि सब कुछ अव्यवस्थित है यहां तक कि स्कूल मे छात्र छात्राओं के लिए पेषाबघर भी नही है। स्कूल की सारी अव्यवस्थाओं के लिए स्कूल स्टाफ विस्तृत बात की एवं अगले भ्रमण तक व्यवस्थाओं को सुधारने का निवेदन किया। स्कूल स्टाफ को महिलाओं का व्यवस्थाओं को सुधारने का यह तरीका काफी प्रभावषाली लगा एवं उन्होंने व्यवस्थाओं को सुधारने का वचन दिया। समूह की अगली बैठक मे महिलाओं ने पुनः स्कूल का भ्रमण किया और पाया कि व्यवस्थाएं पूर्णतया ठीक तो नही हुईं लेकिन आंषिक सुधार अवष्य आया है जैसे कि षिक्षक समय पर स्कूल आ चुके थे कक्षाएं चल रहीं थीं और मध्यान्न भोजन बनाया जा रहा था। महिलाओं को पूर्ण सन्तुष्टि तो नही मिली लेकिन अपनी संगठन शक्ति की सफलता का विष्वास जरुर हो गया। इसी विष्वास के दम पर वे कहतीं हैं कि हम भले ही न पढ़ सके पर बच्चों को जरुर पढ़ाएंगें और धीरे - धीरे एक दिन जरुर वे गांव की सारी व्यवस्थाओं को सुधार पाने मे सफल हो सकेंगीं।
अनिल कुमार गोस्वामी,कम्युनिटी मोबिलाइजर अमानगंज -1, पन्ना
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