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"महिलाओं का सशक्तिकरण और उनमें निवेश टुकड़ों मे नहीं हो सकता है । इसे साधने की कोशिश किसी एक निर्धारित लक्ष्य को पाने के लिये की जा रही इक्का-दुक्का कार्यवाही तक ही सीमित नहीं कही जा सकती है, भले ही वह निकट भविष्य मे लाभकारी हो ।"
संयुक्त राष्ट्र ने 08 सहस्त्राब्दि लक्ष्य तय किये हैं जिन्हें वर्ष 2015 तक हासिल करने का वक्त तय किया गया है । इन्हीं 08 लक्ष्यों में से तीसरा लक्ष्य है स्त्री-पुरूष समानता और महिला शक्ति को बढ़ावा देना । संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान का कहना है कि ’’अगर 2015 तक सहस्त्राब्दि लक्ष्य हासिल करना है तो अब वक्त नहीं खोया जा सकता है, दुनियां की महिलाओं में निवेश करके ही हम इन लक्ष्यों को साधने की आशा करते हैं । तीसरा सहस्त्राब्दि लक्ष्य महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को चुनौती देता है और लड़कियों और लड़कों को स्कूल जाने के लिए बराबरी का मौका देने की मांग करता है । इस लक्ष्य से जुड़े सूचकों का यह भी ध्येय है कि वो प्रगति का आंकलन करे जिससे यह सुनिश्चित हो कि ज्यादा से ज्यादा महिलाऐं पढ़ी लिखी हों, जननीति तय करने में उनकी आवाज और प्रतिनिधित्व हो, और उनके लिए नौकरी की बेहतर संभावनाऐं हों । लेकिन स्त्री पुरूष समानता का मुद्दा सिर्फ एक लक्ष्य तक सीमित नहीं है - यह सब पर लागू होता है । बगैर स्त्री पुरूष समानता के और महिलाओं के सशक्तिकरण के एक भी सहस्त्राब्दि लक्ष्य हासिल नहीं किया जा रहा है । पुरूषों से ज्यादा महिलाओं पर गरीबी का भार पड़ता है बच्चों की देखभाल का जिम्मा भी उन्हीं पर होता है । जीवनभर उन्हें हर क्षेत्र में और लगातार भेदभाव का शिकार होना पड़ता है । जब भी कोई महिला गर्भवती होती है उसका जीवन दाव पर होता है । एचआईवी एड्स जैसी भयानक बीमारियों का खतरा भी महिलाओं को बढ़ता ही जा रहा है । प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में महिलाओं की अनिवार्य भूमिका है, उन्हें पुरूषों जितने अधिकार मिलना चाहिए । महिलाओं के योगदान को पहचानने और उनके अधिकारों को सुरक्षित करने का असर आठों सहस्त्राब्दि लक्ष्यों पर पड़ेगा इन मुद्दों के निपटारे मे विफलता सहस्त्राब्दि लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश भी विफल कर देगी । महिलाओं के अधिकार सुरक्षित करने से सभी को चौतरफा फायदा होगा । सहस्त्राब्दि लक्ष्यों की कड़िया तंग नहीं बल्कि बहुत व्यापक हैं ।
लड़कियों का स्कूल पहुंचना सिर्फ उनके लिए ही कल्याणकारी नहीं है शोध से पता चला है कि कुछ सालों की ही प्राथमिक शिक्षा पाने वाली महिलाओं का आर्थिक भविष्य सुधरने की संभावनाऐं बढ़ जाती है, वो कम बच्चे पैदा करती हैं जो ज्यादा स्वस्थ्य होते हैं और अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी ये महिलाऐं ज्यादा तैयार होती हैं । परिवारों और समाज को इसका बहुत फायदा मिलता है । गरीबी घटाने की मुहिम पर भी इसका सीधा और अविलंब असर होता है ।
महिलाओं का सशक्तिकरण और उनमें निवेश टुकड़ों मे नहीं हो सकता है । इसे साधने की कोशिश किसी एक निर्धारित लक्ष्य को पाने के लिये की जा रही इक्का-दुक्का कार्यवाही तक ही सीमित नहीं कही जा सकती है, भले ही वह निकट भविष्य मे लाभकारी हो । जब तक स्त्री पुरूष समानता का मुद्दा केन्द्र बिन्दु नहीं बन जाता है, जो फिर बाकी मुद्दों को वापिस मानव विकास पर खींच के ले जा सके, जब तक कि विकासशील देशों की महिलाऐं समानता के लिए और जवाबदेही की मांग करते हुये एकजुट नहीं होती है, जब तक कि गरीब देशों की चुनौतियों से निपटने के लिए हम सब अपनी विशेष कार्यवाही को विस्तृत नहीं करते हैं और हम मिलजुलकर काम नहीं करते हैं हमारे वादे वादे ही रहेंगे।
(साभार-बहाना नहीं चलेगा 2015 द मिलेनियम कैम्पेन)
प्रस्तुतकर्ता
प्रस्तुतकर्ता
राजीव श्रीवास्तव
अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक तेजस्विनी, छतरपुर
अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक तेजस्विनी, छतरपुर
1 comment:
मुझे लगता है कि ये पहला आलेख है जिसमे इस मुद्दे का सही अर्थों मे इलाज बताया गया है वर्ना ऐसे बडे 2 अलेखों मे केवल शब्दों का खेल होता है और सप्श्ट नहीं हो पता कि इस लक्ष्य को कैसे हसिल किया जाये आपका अलेख सरल सहज और सत्य के करीब है बधाई्
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