मुनिया की उम्र यही कोई पाँच सात साल की ही होगी शायद.......। रोज वह भी गांव के बच्चों के साथ खेलने की ललक लिये घर से निकलती थी पर साथ में एक छोटे भाई की भी जिम्मेदारी जो थी.........। मुनिया बात बहुत करती थी, पढ़ने-लिखने से दूर होने पर यही उसका एक जानकारी लेने का एकमात्र तरीका जो था। चेहरे पर प्राकृतिक सयानापन उसे और गंभीर बनाता था, जो तय करता था कि उसे इतनी छोटी सी उम्र में तमाम अनुभव हो गये हैं। हाथ में करोंदे रख वह हमेशा तैयार होती थी कि कोई इसी बहाने उससे भी बात करे। ये करोंदे उसे बहुत मददगार होते थे, ये जहाँ एक ओर उसके भाई के खेलने के काम भी तो आते थे। वहीं दूसरे बच्चे उनके लालच में उसे घेर लेते थे। बच्चे श्रोता, उनके बीच बैठी मुनिया और उसकी ढेर सारी बातों की दुनिया, बातें पास पडोस की, नदी पहाडों की, चांद-सितारों की और इन्हीं बातों में सहमते हुये मुनिया अपने भयानक सपनों के किस्से भी हमेशा सुनाती।
माँ और सपने उसे हमेशा से ही बाँधे हुये थे। रोज वह सपनों की बातें किया करती थी। कि आज मुझे सपना आया कि मेरा बापू पीकर आया और उसने माँ को बहुत मारा और माँ जोर-जोर से रो रही है। आज मुझे सपना आया कि माँ बीमार हो गयी है, वो बीमारी में ही घर का काम कर रही है और बेहोश हो गयी। आज माँ फिर भूखी ही सो गयी। आज एक राक्षस आया जो माँ का परेशान कर रहा था कि माँ ने भगवान को पुकारा तो भगवान आये और उन्होंने राक्षस को मार भगाया..........................।आज वो फिर वही सपनों की बात करने बैठ गयी। आज मैंने सपने में देखा कि मेरी माँ को एक .........।
मुनिया रूक, ये बता कि तेरे सपने में माँ हमेशा रोती ही क्यों रहती है, क्या तेरी माँ कभी खुश नहीं होती..... अचानक एक बच्चा बोला ।
क्या सपने ऐसे भी होते हैं? मुनिया का जवाब था और सवाल भी।
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
संजीव परसाई
संचार अधिकारी, भोपाल
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