महिला हिंसा से पीड़ित समाज में आशा की किरण नजर आती है जब कोई महिला अपने लिये स्वयं पहल करती है और पूरा समाज उसे अपने लिये रास्ता बनाने में मदद करता है। जिला छतरपुर के राजनगर ब्लाक के ग्राम डहर्रा के समूहों ने इससे निपटने के लिये जो पहल की है जो सराहनीय ही नहीं स्तुत्य भी है -
मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड को जहां अपने इतिहास के लिए जाना जाता है वहीं अपनी परम्पराओं तथा रीति- रिवाज के लिए पहचाना जाता है। यहां का समाज पुरूष प्रधान है, दुनिया जहाँ विकास की ओर जा रही है वहीँ बुन्देलखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र आज भी पुरानी परंपराओं एवं रूढ़िवादिता व कुरीतियों के जाल मे जकड़े हुए हैं यदि इन ग्रामीण क्षेत्रो में महिलाओ की स्थिति की बात करे तो निर्णय लेने का सर्वाधिकार भी पुरूषो के साथ है यहां तक कि पत्नी प्रत्येक गतिविधि पति के निर्णय के आधार पर करती है। महिला सशक्तिकरण के लिए किये जा रहे प्रयासोंने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है और इसके उदाहरण स्वरूप ग्राम डहर्रा की निवासी राधाबाई की कहानी कुछ इस प्रकार है:-
ग्राम की एक महिला राधाबाई जो कि अपने परिवार के व अपने विकास के लिए समूह मे जुडना चाहती थी लेकिन उनका पति कभी नहीं चाहता था कि मेरी पत्नी समूह से जुड़े और उसे कोई जानकारी प्राप्त हो इस हेतु बडी मसक्कत के बाद तैयार हुए इसी प्रकार पति की सहमति के बाद एकता समूह से जुड़ी समूह की गतिविधियो मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगी। परिवार की जिम्मेदारियों को पूर्ण करते हुए बच्चों की पूरी देखभाल भी पूरी जिम्मवारी से की तथा समूह की गतिविधि में भी अपनी बराबर भागीदारी रखी। बचत समय पर जमा करना ,बैठक की चर्चा में भाग लेना इस तरह अपनी भविष्य की तस्वीर को अच्छा व सशक्त देखने हेतु निरन्तर प्रयास कर रही थी। अब धीरे धीरे पति का विरोध शरू हो गया । पति का बेबजह डांटना, मारना, चिल्लाना आम बात हो गयी।
तेजस्विनी कार्यक्रम में महिला हिंसा पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें तेजस्विनी समूह की कई महिलाओं ने भाग लिया। इस कार्यशाला में राधाबाई भी शामिल हुई। कार्यशाला में महिला हिंसा जैसे शारीरिक, मानसिक एवं यौन हिंसा के बारे मे विस्तार से जानकारी दी गई । महिलाओं ने उसे पूरी गम्भीरता से लिया ,समूह की सदस्य राधाबाई महिला हिंसा के अंतर्गत शारीरिक हिंसा से अत्यधिक पीड़ित थी समूह की अन्य महिलाओं को राधाबाई की व्यथा से दुखित होकर महिलाओं ने उसके पति को समझाने का प्रयास किया जिस पर पति ने सार्वजनिक रूप राधा बाई की पिटाई कर दी,जिसका समूह कि महिलाओं ने न केवल विरोध किया, बल्कि महिला हिंसा पर बने कानून के बारे में भी बताया।इसके बाद पति ने समूह से अलग होने हेतु दबाब डाला तथा समन्वयक एवं मोबलाइजर से बात की, इस पर उसको बहुत समझाया गया,समूह द्वारा कहा गया कि राधाबाई स्वयं अपना नाम कटवाना चाहे तब ही उसका नाम काटा जा सकता है।
राधाबाई का दृढ़ संकल्प था कि उसको समूह में रहना है उसके लिये उसने परिवार ,पति का लाख विरोध सहा लेकिन समूह नहीं छोडा एवं समूह ने भी उसका पूरा साथ दिया। अब धीरे धीरे उसने अपने पति को अपने बदलाव तथा जानकारियों मे हुई वृद्धि, बचत एवं दृढ़ संकल्प के दम पर अपने पक्ष में कर लिया, अब न तो पति रोकता है और न ही परेशान करता है।समूह की महिलाओ ने राधाबाई को खाता संचालन के लिये भी अधिकृत किया है। आज राधाबाई बैक में अकेले पैसा जमा करने जाती है। जिसमें उनका पति भी सहयोग करता है. ऐसे लोगों के लिये कहा जा सकता है कि:
मंजिले उन्ही को मिलती है
मंजिले उन्ही को मिलती है
जिनके सपनो मे जान होती है
पंखो से कुछ नही होता है
हौंसलों से उड़ान होती है।
मनोज नायक
जिला कार्यक्रम प्रबंधक
जिला छतरपुर
पात्रों के नाम परिवर्तित किए गए हैं।
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