वास्तव में टीकमगढ़ को सुनहरे भूतकाल का क्षेत्र के नाम से जाना जाता है जो गलत भी नहीं है। प्रदेश के उत्तर में बसा ये जिला अपनी निहायत ही खूबसूरत भौगोलिक रचना और ठेठ अंदाज के लिये जाना जाता है। जिले में पिछड़ा वर्ग , अनुसूचित जाति के परिवारों की संख्या अधिक है । पिछड़ा वर्ग में लोधी समाज एवं अनुसूचित जाति में अहिरवार समाज के लोग बहुतायत में हैं ।
जिलें में सामंतवाद एवं ऊँच-नीच की भावना अक्सर देखने को मिलती है । सम्मान के नाम पर दलित वर्ग सम्पन्न लोगों के पैर छूता नजर आता है । यहां पर महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है । कड़ी धूप में मजदूरी करना, घरेलू काम करना महिलाओं की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है । मजबूरीवश अनेकों महिलाऐं मजदूरी के लिए दिल्ली , आगरा जैसे शहरों में जाती रहती है । यही स्वास्थ्य से जुड़ी भयावह स्थिति की एक खास वजह है, जो अपने साथ HIV/Aids तथा STD व अन्य शारीरिक व मानसिक रोगों को साथ लाती है। इसके साथ ही पर्दा प्रथा यहां काफी गहरे तक जड़ जमाये हुये है । स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर भी जागरूकता का नितांत अभाव है यही कारण है कि जिले में मातृ मृत्यु दर (876 प्रतिलाख) एवं शिशु मृत्युदर ( 93 प्रति हजार) अन्य की तुलना में अधिक है । मातृ मृत्यु दर के मामले में सर्वाधिक गंभीर स्थिति पृथ्वीपुर ब्लाक की है जहां प्रति लाख प्रसव पर 1381 महिलाऐं मौत का शिकार बनती है वही शिशु मृत्युदर 114 प्रति हजार है । यह अत्यंत चिंता का विषय है ।जिले में महिलाओं की जगह अभी चार दिवारी तक सिमटी नजर आती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे उन्होंने बाहरी दुनिया देखी ही नहीं है । इसके विपरीत स्वशक्ति कार्यक्रम के तहत बनाये गये स्वसहायता समूहों से जुड़ी रही महिलाओं में जागरूकता देखी जा सकती है लेकिन उनके लिए भी आजीविका संबंधी कार्यक्रम संचालित करने की आवश्यकता है ।अन्य स्वसहायता समूह जैसे एस0जी0एस0वाई0 से जुड़ी महिलाओं के सोच विचार में बदलाव बहुत कम नजर आता है । पैक्स परियोजना में गठित समूह की महिलाऐं केवल आर्थिक रूप से थोड़ा सक्षम नजर आती है ।
साक्षरता जैसे विषय पर जिले में कुछ भी हलचल दिखाई नहीं देती है । गाँवों में संचालित पुस्तकालय संचालकों को सालों से मानदेय नहीं मिला है जो उनकी साक्षरता के कार्य में रूचि न होने का कारण है । जिले में पुरूष साक्षरता एवं महिला साक्षरता में लगभग 28 % का अंतर है।
ग्राम पंचायत में भागीदारी के विषय में जिले की महिलाओं की उपस्थिति नगण्य सी है, वे तो इस बारे में न तो सोच सकी है और न जान सकी हैं । तेजस्विनी कार्यक्रम के तहत बनाये गये समूहों में इस बाबत कार्य किया जा रहा है।
निरंतर बढ़ता लिंगानुपात भी जिले के लिये चिंता का विषय है यहां प्रति हजार पुरूषों पर 886 महिलाऐं है । इस विषय में कोई विशेष कार्यक्रम संचालित नहीं हुआ है । जिले के कुछ गांवों में तो उड़ीसा से महिलाओं को लाकर शादी की गई है जो अत्यंत चिंता का विषय है । तेजस्विनी कार्यक्रम के दौरान इस विषय पर भी कार्य किया जाना चाहिये।
जिले की सबसे चिंतनीय स्थिति खुले में शौच जाने से संबंधित है । विकल्पहीनता के चलते खुले में शौच महिलाओं की मजबूरी है । इसके साथ ही दूर से पानी लाना भी महिलाओं के लिए दुष्कर कार्य है लेकिन समाज के पूर्वाग्रहों के कारण यह काम महिलाओं को ही करना पड़ रहा है । बाल-विवाह जैसी गंभीर समस्या से भी जिला अछूता नहीं है । यहां अनेकों बालिकाऐं कम उम्र में ब्याह दी जाती है । जिससे उनका विकास अवरूद्ध हो जाता है ।
तेजस्विनी कार्यक्रम में महिला समानता के लिए किए जा सकने वाले प्रयास :-
ग्राम पंचायतों में भागीदारी एवं इससे संबंधित प्रशिक्षण /जानकारी देना सबसे पहली जरूरत है । यदि महिलाऐं इसके विषय में जानेगी, उसके बाद ही हम सत्ता में भागीदारी या आरक्षण का लाभ लेने की बात कह सकेंगें ।
महिला स्वास्थ्य की ग्रामीण क्षेत्रों में अत्याधिक अनदेखी की जाती है । यही कारण है कि महिलाऐं कमजोर हो जाती है और बीमारियों की शिकार हो जाती है । इस हेतु जागरूकता के लिए कार्य करने एवं स्वास्थ्य विभाग से प्रभावी समन्वय करने की आवश्यकता है । महिलाओं को आर्थिक रूप से आगें बढ़ाने में स्व-सहायता समूह प्रमुख भूमिका निभा सकते है । लेकिन इसका सही क्रियान्वयन अन्य योजनाओं में नहीं हो पा रहा है । समूह बनाऐ जाते है, जो कुछ समय बाद टूट जाते है । अतः तेजस्विनी में इसका ध्यान रहते हुए महिलाओं के लिए आजीविका के बेहतर अवसर उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता है ताकि वें आर्थिक रूप से सक्षम हो सकें ।
साक्षरता में आमतौर पर महिलाओं की रूचि सामयिक होती है । कुछ दिन उत्साह दिखाने के बाद वें इससे विमुख हो जाती है । अतः साक्षरता में ऐसा प्रयास हो कि उनका पाठ्यक्रम चित्रात्मक एवं रूचिकर हो ।
ग्रामीण क्षेत्र में जन समुदाय के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक शासन की विभिन्न योजनाऐं संचालित है।जिनमें से अनेकों योजनाऐ महिलाओं से संबंधित है और पुरूषों के समान बराबरी का एहसास कराती है । इन योजनाओं का लाभ लेना, सिखाने का प्रयास सुव्यवस्थित रणनीति के तहत किए जाने की आवश्यकता है ।
लिंगानुपात में आ रही असमानता को दूर करने की रणनीति बनाने की आवश्यकता है । जिसके तहत महिला एवं पुरूष दोनों के लिए जागरूकता कार्यक्रम हों ।
घरेलू हिंसा गरीब परिवारों में बहुत ज्यादा होती है । लेकिन ये घटनाएं घर तक ही सिमट कर रह जाती है । अतः रणनीति इस तरह हो जो पीड़ित महिला को हिंसा से बचा सकें । इस हेतु विषय विशेषज्ञों की एक प्रशिक्षित टीम समूहों में जाकर प्रशिक्षण एवं सकारात्मक परामर्श दे सकें ।
महिलाओं को कानूनी साक्षरता का भी सरलतम तरीके से प्रशिक्षण एवं परामर्श दिए जाने की आवश्यकता है ।
महिलाओं के घरेलू काम के घण्टों को कभी भी गिना नहीं जाता है जबकि वह पुरूषों से अधिक श्रम करती है । अतः कड़ी मजदूरी में कमी हेतु छोटे-छोटे कम लागत के कृषि यंत्र, कुओं पर पुली लगाना, उन्नत चूल्हों , सोलर कुकर का इस्तेमाल सिखाना, घरेलू कार्यों में पुरूषों की भागीदारी बढ़ाने के प्रयास उसके श्रम में कमी ला सकते है ।
श्री सुशील वर्मा
जिला कार्यक्रम प्रबंधक
टीकमगढ़
2 comments:
वर्माजी बधाई,
आपने जो मुद्दे उठाये हैं वे वाकई शक्तिशाली हैं, इन मुद्दों के हल के बिना ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण की कल्पना व्यर्थ है,
टीकमगढ़ जिले की सटीक विवेचना के लिए बधाई...........
आदरणीय आपके ब्लाक पर नारी सशक्तिकरण एंव जेंडर समानता के जो प्रयास किये जा रहे हैं वह निश्चित ही स्वागत योग्य है। इन प्रयासों के तहत ही मशहूर शायर आलोक श्रीवास्तव की पक्ंितयां मुझे प्रांसगिक लगती हैं। जो विशेष रुप से महिलाओं को प्रेरित करने के लिये सार्थक साबित हो सकती हैं।
मेरा आसमां
किसी और ने तो बुना नहीं,
मेरा आसमां, मेरा आसमां
तेरे आसमा से जुदा नहीं,
मेरा आसमां, मेरा आसमां
ये जमीन मेरी जमीन है,
ये जहान मेरा जहान हैं,
किसी दूसरे से मिला नहीं,
मेरा आसमां, मेरा आसमां
कही धूप है, कही चाॅदनी,
कही रंग है, कही रोशनी,
कभी आसूओं से धुला नहीं,
मेरा आसमां, मेरा आसमां
उसे छू सकुं ये जुनून है,
यहां कब किसी का हुआ नहीं,
मेरा आसमां, मेरा आसमां
गिरी बिजलियंा मेरी राह पर,
कई आधियां भी चली मगर,
कभी बादलों सा झुका नहीं,
मेरा आसमां, मेरा आसमां
संजय सक्सेना
जिला संचार अधिकारी
झाबुआ
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