तेजस्विनी कार्यक्रम में समूहों का विकास और बैंक से जुड़ाव

एक कंसेप्ट पेपर
सामान्य तैार पर स्वसहायता समूह, अपने सदस्यों को तीन महिने के बाद आंतरिक ऋण देना प्रारंभ करता है या तब जबकि समूह के पास इतना पैसा हो जाये कि वह अपने कुछ सदस्यों की उधार आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। यह प्रक्रिया तब प्रारंभ होती है जबकि समूह में स्वस्थ चर्चा का माहौल बन सके और समूह में निम्न नियम बनकर लागू हो गये हो -
- ऋण लेने की प्रक्रिया व ऋण के कारणों की जाँच - बैठक के दौरान सदस्यों से उनकी ऋण आवश्यकताओं के बारे में जानना, आकस्मिक ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया के बारे में जानना, सदस्यों द्वारा ऋण राशि के निर्धारण के बारे में जानने का प्रयास करना आदि
- ऋण देना - समूह अपने सदस्यों को अधिकतम कितनी राषि ऋण के रूप में दे सकता है, आदि
- ऋण वापसी का प्रकार - एकमुश्त वापसी, समान किश्त वापसी, या असमान किश्त वापसी
- ब्याज दर - ब्याज दर का निर्धारण विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है जैसे कि ब्याज दर इतनी हो कि सदस्यों के लिये भुगतान आसान रहे या इतनी कम भी न हो कि सदस्यों पर इसके भुगतान का दबाव ही न रहे आदि
- पुर्नभुगतान का तरीका - ब्याज का भुगतान प्रत्येक बैठक में तथा मूलधन का भुगतान ऋण वापसी की योजना के अनुसार
- ऋण वापसी में समूह का दबाव - ऋण वापसी में अनुचित देरी होने पर अतिरिक्त ब्याज का दंड निर्धारण या ऋण वापसी में वास्तविक समस्या होने पर ऋण वापसी के समय को परिवर्तन करना।
2. लेन-देन प्रारंभ करने के शुरूआती दिनों में अधिक ऋण की मांग की जायेगी क्योंकि इस समय सदस्य अपनी तुरंत की छोटी उधार आवश्यकताओं के लिये ऋण की मांग करेंगे जैसे कि साप्ताहिक बाजार से राशन खरीदना, बीमार बच्चे को डाक्टर के पास ले जाना आदि। यह बहुत आवश्यक है कि सदस्य इस तरह के ऋणों को लें ताकि वे समूह की भावना व उनके जीवन स्तर में सुधार के लिये समूह की आवश्यकता को बेहतर तरीके से समझ सकें।
3. यहाँ यह भी समझना आवश्यक है कि सदस्यों को आवष्यकता हो कैश बॉक्स में उन्हें देने के लिये राशि हो । सामान्यतौर पर यह देखा गया है कि अधिकतर समूह अपनी बचत राशि को बैंक खाते में रखना चाहते हैं ताकि उनकी बचत सुरक्षित रहे। यह सदस्यों पर विपरीत प्रभाव डालता है क्योंकि जब उन्हें ऋण की आवश्यकता होती है तब बैंक के गाँव से दूर होने के कारण या फिर समय की अनिश्चितता के कारण ऋण प्राप्त नहीं होता है। अतः यह आवश्यक है कि समूह अपने पास हमेशा कुछ राशिः रखे जिससे कि सदस्यों की आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
4. समूह में लेन-देन प्रारंभ होने के कुछ महिनों के बाद समूह में पैसा बढ़ना प्रारंभ होने लगेगा, सदस्यों की नियमित बचत और उनके द्वारा निरंतर किये जा रहे ब्याज भुगतान के चलते समूह के पास काफी बचत हो चुकी होगी। इस समय समूह को इस पैसे के सुरक्षा के बारे में सोचना होगा तथा यही सही समय है जब बैंक में बचत खाता खोलने के बारे में सोचना चाहिये।
5. बचत खाते के बारे में सदस्यों के मन में कुछ डर होते हैं जैसे कि उनके पैसे की समय पर उपलब्धता। वे ऐसा भी सोचते हैं कि शायद बैंक इस बचत राशि को उनके पुराने कर्ज़ खाते में जमा कर लेगा आदि। यह अच्छा होगा कि इन आशंकाओं के विषय में सदस्यों के बीच विस्तार से चर्चा कर ली जाये।
6. जब समूह छः माहों के आसपास का हो जाये तब समूह का बचत खाता किसी बैंक में खोलने का सही समय होता है । सामान्यतौर से यही वो समय होता है जब समूह को यह भी तय कर लेना चाहिये कि सभी सदस्यों को ऋण देने के बाद भी समूह के कैष बॉक्स में कुछ राशि रहे।
7. समूह हमेशा का बचत खाता बैंक में खोलने की प्रक्रिया में यह भी शामिल है कि समूह ही अपने दो या तीन सदस्यों को बैंक में अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता के रूप में नामित करे। यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि समूह अचानक ही हस्ताक्षरकर्ताओं को चयनित न करे, हमें समूह के स्वाभाविक नेतृत्व को बाहर आने के लिये समय देना चाहिये। सामान्यतौर से बैंक कहते हैं कि किन्हीं दो सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिये एक अध्यक्ष के तौर पर तथा दूसरा सचिव के तौर पर लेकिन उत्तम यह होगा कि हम दो के बजाय तीन अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता रखें। इस स्थिति में तीन हस्ताक्षर कर्ता होने से जहाँ एक ओर खाता संचालन में अधिक पारदर्शिता रहेगी वही दूसरी ओर अगर इन तीनों में से कोई एक गाँव से बाहर हो तो भी किन्हीं दो के हस्ताक्षर से समूह, खाते का संचालन कर सकेगा। तीन हस्ताक्षरकर्ताओं के चयनित किये जाने से यह फायदा भी होगा कि उन तीनों में से कोई दो समूह खाते का संचालन कर सकते हैं परन्तु यदि दो ही होंगे तो यदि इन दोनों के हस्ताक्षर आवश्यकता होंगे।
8. समूह के लिये यह भी आवश्यक है कि वह बैंक में बचत खाता खोलने के लिये समूह की ओर से एक प्रस्ताव भी पारित करे और इस खाते के संचालन के लिये तीन सदस्यों को समूह की ओर से खाता संचालन के लिये नामित करे। इस प्रस्ताव में उस बैंक की शाखा का भी स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये जिसमें समूह अपना खाता खोलना चाहता है। सामान्यतौर पर बैंक की सबसे नज़दीकी शाखा को ही खाता खोलने के लिये आवेदन दिया जाना चाहिये जिससे कि खाता संचालन के लिये कम से कम खर्च हो। समूह को यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि समूह का खाता खोलने के लिये अपने क्षेत्र की सर्विस एरिया बैंक का ध्यान रखे। स्वसहायता समूह के बैंक से समन्वय के संदर्भ में सर्विस एरिया ब्रांच का ध्यान रखने के पीछे कारण यह है कि जब समूह को शासन की अन्य योजनाओं जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना आदि का लाभ लेना होगा तब उसका सर्विस एरिया बैंक में खाता होना आवश्यक होगा।
9. समूह का बैंक में खाता खोलने के संदर्भ में कुछ और दस्तावेज भी आवश्यक होंगे जैसे खाता खोलने के लिये भरा हुआ आवेदन प्रपत्र, तीनों नामित सदस्यों का व्यक्तिगत पहचान पत्र, तीनों नामित सदस्यों के फोटोग्राफ, समूह की सील जिसमें समूह का नाम, ग्राम तथा अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता लिखा हो साथ ही समूह द्वारा अपनी बैठक में खाता खोलने के लिये एक प्रस्ताव भी पारित करना होगा इस प्रस्ताव की एक प्रति बैंक को उपलब्ध कराना होगी साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रस्ताव की एक प्रति समूह के बैठक विवरण में भी रहे। तीनों सदस्यों के लिये आवश्यक होगा कि वे अपने हस्ताक्षरों को भली-भाँति करना सीख लें ताकि भविष्य की समस्याओं से बचा जा सके। कुछ बैंक मैनेजर चाहते हैं कि समूह के सभी सदस्यों के फोटोग्राफ लगाये जायें, इस स्थिति में यह उचित होगा कि समूह इस खर्च को कम करने के लिये एक फोटोग्राफर समूह में लाये और पूरे समूह का एक फोटो खिंचवा कर बैंक को दिया जावे।
10. जब समूह 15 से 18 माह का हो जाये और अपने 1 से 2 उधार चक्र सफलतापूर्वक पूरा कर ले ( यहाँ उधार चक्र का अर्थ है कि समूह के अधिकतम सदस्य लगभग 70 प्रतिशत , समूह से एक बार ऋण ले लें और इतने ही सदस्य उस ऋण को वापस भी कर दें, सामान्यतौर से इस एक चक्र के पूरा होने में 5 से 6 माह का समय लगता है ) । इस अंतराल में समूह को अपनी बचत और उधार के प्रबंधन का पर्याप्त अनुभव हो जायेगा और साथ ही किसी बाहरी वित्तीय संस्था के सामने समूह की वित्त प्रबंधन क्षमता को परखने के लिये पर्याप्त उदाहरण हो जाते हैं। इस आधार पर समूह अपने बैंक में क्रेडिट लिमिट के लिये भी आवेदन कर सकता है । क्रेडिट लिमिट सामान्यतौर पर तीन वर्षों के लिये बढ़ाई जाती है। क्रेडिट लिमिट की राशि समूह की स्वयं कि राशि के आधार पर ही तय की जाती है जिसमें समूह की बचत राशि को व प्राप्त ब्याज को जोड़कर व समूह के खर्च को घटाकर प्राप्त राशि के आधार पर ही निर्णय किया जाता है। इसमें बैंक उक्त राशि के बराबर (1:1) से चार गुना (1:4) तक क्रेडिट लिमिट दे सकती है। सामान्यतौर पर बैंक दोगुने से प्रारंभ करके समूह की वापसी दर के आधार पर चार गुना तक लिमिट दे सकती है। कुछ उदाहरणों में बैंक द्वारा चारगुना से अधिक क्रेडिट लिमिट स्वीकृत किया गया है।
11. समूह के स्तर पर देखा जाये तो समूह का बैंक से जुड़ाव एक कठिन प्रक्रिया है। इसकी शुरूआत से ही हमें यह देखना होगा कि सभी सदस्य इस प्रक्रिया से भली-भाँति परिचित रहें। इसका महत्वपूर्ण पहलू यह है कि समूह यह जाने कि जो ऋण उसे प्राप्त हो रहा है वह पूरे समूह की सामूहिक जिम्मेदारी है न कि किसी एक सदस्य की, अतः समूह को इसके भुगतान की सामूहिक जिम्मेदारी लेना होगी, अर्थ यह है कि अगर कोई सदस्य समय पर ऋण का भुगतान नहीं कर रहा है तो समूह को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह सदस्य समय से ऋण वापसी करे । दूसरा पहलू है समूह व बैंक की ब्याज दरों में अंतर होना। सामान्यतौर पर यह देखा गया है कि बैंक द्वारा समूह के लिये तय ब्याज दर, समूह द्वारा सदस्यों के लिये तय की गयी ब्याज दर से कम होती है। इस तरह समूह के पास दो तरह की ब्याज दर होती हैं। एक तो वह दर जिसपर कि समूह अपनी राशि सदस्यों को ऋण के रूप में देता है तथा दूसरी वह दर जो बैंक की क्रेडिट लिमिट से प्राप्त उधार पर होती है। इन दरों में अंतर होने पर समूह सदस्य ऋण लेते समय समूह की राशि के बजाय कैश क्रेडिट से उधार प्राप्त करने पर जोर देते हैं क्योंकि उसकी ब्याज दर कम होती है। इसके अलावा ब्याज दर अलग अलग होने के कारण इसका हिसाब रखने में अत्यधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। एक अच्छी तरह से संचालित किया जाने वाला समूह इस ब्याज दर में कोई अंतर नहीं रखता है चाहे वह समूह की बचत राशि हो या कि क्रेडिट लिमिट की राशि। वह दोनों उधारों को समान रूप से देखता है चाहे वह बचत से दिया गया हो या क्रेडिट लिमिट से। अतः समूह अपने सदस्यों को उधार देते समय यह स्पष्ट नहीं करता कि उसे उधार समूह की राशि से दिया जा रहा है या कि बैंक की राशि से।
12. समूह के स्तर पर अगला महत्वपूर्ण कार्य होगा समूह के लिये एक उधार योजना बनाना जिसमें समूह की प्रत्येक सदस्य किसी भी आयअर्जन गतिविधि को प्रारंभ करने के लिये अपनी उधार आवश्यकताओं को शामिल कराये और समूह एक अंतराल के बाद इस योजना की समीक्षा करे। किसी भी उत्पादक ऋण की स्वीकृति में प्रेरक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। प्रेरक को चाहिये कि वह समूह को प्राप्त ऋण आवेदनों का विष्लेषण करने में समूह की मदद करे। कई बार ऐसा देखा गया है कि ऋण राशि की गणना में भी मदद की आवश्यकता होती है जिसके कारण उत्पादक ऋण, उपभोग ऋणों व अनुत्पादक ऋणों में शामिल हो जाते हैं। सदस्यों को दोनों तरह के ऋणों में अंतर करने में सहायता करना चाहिये। इसके बाद गतिविधि से होने वाली आय के आधार पर ऋण के पुनर्भुगतान की शर्तों को भी स्पष्ट करना चाहिये। उत्पादक ऋण की स्थिति में सदस्यों के बीच यह स्पष्ट करना भी आवश्यक होगा कि ऋण का पुनर्भुगतान गतिविधि की सफलता से संबधित नहीं है अर्थात गतिविधि के असफल होने की स्थिति में भी संबधित सदस्य को उक्त ऋण का पूरा ब्याज सहित भुगतान समूह को करना है। जब सभी सदस्यों के उधार योजना के लिये अपने प्रस्ताव दे दें तब समूह को सभी प्रस्तावों को इकट्ठा करके देखना होगा कि उसके पास कुल कितनी राशि के उधार मांग प्रस्ताव आये हैं, यदि इन प्राप्त प्रस्तावों की राशि और समूह की कुल राशि में अंतर होता है तो सभी सदस्यों से उनके द्वारा दिये गये प्रस्तावों पर फिर से सोचकर निर्णय लेने को कहा जाये। इसके बाद अंतिम उधार योजना एक कागज की शीट पर बनाई जाये तथा इस पर सभी सदस्यों के हस्ताक्षर लिये जायें फिर इसे बैंक को दिये जाने वाले ऋण आवेदन के साथ संलग्न किया जाये। किसी भी उत्पादक ऋण को समूह अपने समूह की राशि से भी दे सकता है इसके लिये आवश्यक नहीं है कि समूह बैंक क्रेडिट लिमिट से ही उत्पादक ऋण ले सकता है।
13. समूह के बैंक से जुड़ाव का एकमात्र कारण है उत्पादक गतिविधि, यह सभी सदस्यों को अच्छी तरह से मालूम होना चाहिये और यह भी ध्यान रखा जावे कि गतिविधि की सफलता भी सुनिश्चित की जाये। बैंक ऋण की राशि मुख्यतया गतिविधि के विस्तार के साथ ही बढ़ती जाती है जैसे फसल में लगने वाले संसाधन, या दुकान का सामान( अगर किसी सदस्य के पास पहले से किराना दुकान है तो ), एक और बकरी खरीदने के लिये, बकरी पालन प्रारंभ करने के लिये, फसल का क्षेत्र बढ़ाने के लिये आदि। वैसे जिन सदस्यों का बैंक से पहली बार ही जुड़ाव हो रहा है उन्हें कोई नई गतिविधि बैंक के कर्ज के साथ प्रारंभ करने के लिये प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये। अगली बार जब समूह को बैंक लेन-देन का अनुभव हो जाये तथा सदस्यों में आत्मविश्वास आ जाये तब हम उन नयी गतिविधियों को भी ले सकते हैं जो कि थोड़ी जोखिम भरी हों तथा पुर्नभुगतान में लंबा समय लेने वाली हों या कि जो आधारभूत संरचना के निर्माण से संबधित हों जैसे पुराने ऋणों को चुकाना, गिरवी रखी जमीन को वापस लेना, सिंचाई के साधन लेना , घर सुधरवाना आदि।
14. लोकेशन आफिस के स्तर पर एक प्रक्रिया जो आवश्यक रूप से की जाना चाहिये वह है कि समूह का आवेदन बैंक से जुड़ाव के लिये बैंक को भेजने के पहले ही जाँच लिया जाये कि क्या समूह वाकई में बैंक से जुड़ने के लिये तैयार है। अगर लोकेशन स्तर पर हम यह सुनिष्चित कर लें तभी बैंक को आवेदन भेजना सही होगा। लोकेशन आफिस द्वारा के्डिट लिमिट के लिये सिर्फ उन्हीं समूहों का आवेदन भेजा जाना चाहिये जो कि ग्रेडिंग चैक लिस्ट के हिसाब से इस लायक प्रतीत होते हों। इसका प्रमुख कारण है कि अगर प्रारंभिक स्तर पर कोई समूह बैंक से लेनदेन में अनियमितता बरतता है तो इसका सीधा असर बैंक के विश्वास पर होगा और बैंक, समूहों को दी जाने वाली क्रेडिट लिमिट की प्रक्रिया को रोक सकते हैं, इसके कारण उन समूहों का भी नुकसान होगा जो कि उत्तम स्तर पर हैं।

15. मियादी ऋण या कैष क्रेडिट लिमिट - बैंक से ऋण लेते समय हमें बैंक मैनेजर से बात करके यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे समूह को मियादी ऋण दे रहे हैं या कि कैश क्रेडिट लिमिट। यह ठीक होगा कि समूह बैंक से लिमिट की ही मांग करे क्येांकि मियादी ऋण को समूह एक बार में ही पूरा लेना होता है और एक बार पूरा भुगतान करने के बाद इसे पुनः प्राप्त करने के लिये वही प्रक्रिया दोहरानी होगी जिसमें कि इसे पुनः बैंक से स्वीकृत कराना होगा। जबकि कैश क्रेडिट लिमिट एक निष्चित समय तक समूह के पास होती है, इस दौरान समूह कितनी ही बार इस पैसे को निकाल तथा जमा कर सकता है ।

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