महिला सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय नीति

भारत सरकार ने देश में महिलाओं की स्थिति सुधारने का लक्ष्य हासिल करने के लिए वर्ष 2001 में महिला सशक्तिकरण हेतु राष्ट्रिय नीति जारी की। भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मूल अधिकार, मूल कर्तव्य और राज्य के नीति-निदेशक तत्वों में लिंग समानता का सिद्धांत अंतर्निहित है। संविधान में न केवल महिलाओं को बराबरी की दर्जा दिया गया है, बल्कि इसमें राज्यों को इस बात के भी अधिकार दिये गये है कि वे महिला हितों के लिए आवश्यक कदम भी उठा सकते हैं।
एक लोकतान्त्रिक नीति की रूपरेखा के अंतर्गत हमारे कानून, विकास नीतियां, योजनाएं और कार्यक्रम विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के विकास को लक्षित करती है। 1977-78 की पांचवी पंचवर्षीय योजना से महिलाओं से जुडे़ उनके कल्याण से लेकर विकास तक के मुद्दे हल करने के दृष्टिकोण में एक उल्लेखनीय परिवर्तन आया है।
हालिया सालों में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए महिला सशक्तिकरण को केन्द्रीय मुद्दे के रूप में जगह दी गयी है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और कानूनी हक प्रदान करने के लिए 1990 में संसद में पारित एक कानून के जरिए ‘‘राष्ट्रीय महिला आयोग‘‘ का गठन किया। संविधान के 73वें व 74वें संशोधन के जरिए महिलाओं के लिए पंचायतों व नगर निगमों में स्थान आरक्षित किये गये। इससे स्थानीय स्तर पर नीति निर्माण व निर्णय निर्धारण में महिलाओं की भागीदारी की मज़बूत नीवं तैयार हुई।
भारत ने महिलाओं के बराबरी के अधिकार को सुरक्षित करने के प्रति वचनबद्ध अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधियों व मानवाधिकार समझौतों का अनुमोदन भी किया है। इनमें 1993 की महिलाओं के प्रति सभी तरह के भेदभाव को समाप्त करने की संधि, 1985 की नैरोंबी प्रगतिशील रणनीति संधि, 1995 की बीजिंग घोषणा व प्लेटफार्म फॉर एक्शन संधि, 1975 की मैक्सिको कार्ययोजना और संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीकृत 21वीं शताब्दी के लिए लिंग समानता और विकास व शांति पर घोषणा पत्र शामिल है।
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति में इस मुद्दे से जुड़ी अन्य नीतियों व नोवीं पंचवर्षिय योजना में किये गये वायदों का भी उल्लेख है।

महिला सशक्तिकरण नीति के उद्देश्य -
- आर्थिक व सामाजिक नीतियों के जरिए महिलाओं के विकास के लिए वातावरण तैयार करना।
- राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक , सभी क्षेत्रों में पुरूषों के बराबरी के आधार पर सभी मानवाधिकारों व मूल स्वतंत्रता का महिलाओं को लाभ पहुंचाना।
- राजनैतिक, आर्थिक , सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक , सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी व निर्णय निर्धारण में महिलाओं को बराबर अवसर प्रदान करना।
- सभी स्तरों पर स्वास्थ्य देखभाल, गुणात्मक शिक्षा, व्यावसायिक मार्गदर्शन, रोजगार, मेहनताना, पेशेगत स्वास्थ्य व सुरक्षा , सामाजिक सुरक्षा आदि में बराबर अवसर प्रदान करना।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाले सभी तरह के भेदभाव को दूर करने के लिए कानूनी तंत्र को मज़बूत बनाना।
- पुरूषों व महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के जरिए सामाजिक दृष्टिकोण व सामुदायिक प्रथा में बदलाव लाना।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाली सभी तरह की हिंसा को रोकना।
- नागरिक संगठनों, खासतौर पर महिलाओं के संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करना व उसे मज़बूत बनाना।
महिला सशक्तिकरण - वैश्विक स्थिति
पिछले तीन दशकों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता को बढ़ाने वाले कदमों या उपायों के जरिए महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता और मूलभूत मानवाधिकारों तक महिलाओं की पहुंच, पोषण व स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार के बारे में जागरूकता बढ़ी है। महिलाओं के दूसरे दर्ज का नागरिक होने के बारे में जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ जाति, वर्ग, आयु और धार्मिकता जैसे दूसरे कारकों के संबंध में समाजिक-सांस्कृतिक अनुकूलन के रूप में लिंग की धारणा ने भी जन्म लिया है। लिंग असल में महिलाओं का पर्यायवाची नहीं है और न ही पुरूषों के हितों की हानि दर्शाने वाला शून्य अंक वाला खेल है। इसके विपरित यह महिलाओं व पुरूषों दोंनो से और उनकी एक दूसरे के सापेक्ष स्थिति से संबंधित है । लिंग समानता मानव के सामाजिक विकास की ऐसी स्थिति को दर्शाती है जिसमें व्यक्तियों के अधिकारों जिम्मेदारियों और अवसरों को उनके महिला या पुरूष के रूप में जन्म लेने के तथ्य से तय नहीं किया जायेगा। दूसरे शब्दों में लिग समानता ऐसी स्थिति होगी जिसमें पुरूष और महिला दोनों ही अपनी पूरी क्षमता की अनुभूति करेंगे।
विश्व स्तर पर लिंग समानता स्थापित करने की महत्ता को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 1984 में अलग फण्ड के रूप में संयुक्त राष्ट्र महिला विकास फण्ड की स्थापना की गयी। उस समय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे मुख्यधारा की गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा। 1995 की महिलाओं पर हुई बीजिंग विश्व बैठक में घोषित प्लेटफार्म आॅफ एक्शन ने इस परिकल्पना को और विस्तार दिया। प्लेट फार्म आफ एक्शन में इसे लिंग मुख्यधारा कहा गया और सभी नीति निर्माण, अनुसंधान योजना निर्माण, समर्थन व सलाह , विकास क्रियान्वयन और संचालन तक लिंग परिदृश्य का उपयोग है।
लिंग समानता हासिल करने का संयुक्त राष्ट्र और दूसरी कई एजेसिंयों का कार्य एक दूसरे से नजदीकी रूप से जुड़े तीन क्षेत्रों की ओर अभिमुख है। महिलाओं की आर्थिक क्षमता को मजबूती प्रदान करना जिसमें नई तकनीकी और नए व्यापार एजेण्डा पर ध्यान केन्द्रित है , महिला नेतृत्व और राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहन देना और महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को समाप्त करना। इससे यह स्पष्ट है कि महिलाओं के लिए बराबरी का दर्जा हासिल करने के लिए अभी बहुत लम्बा फासला तय करना है और इस कार्य के लिए कई मंचों पर एकाग्र प्रयासों की आवश्यकता है।

(राजीव श्रीवास्तव)
अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक
तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम
जिला छतरपुर (म.प्र.)
स्रोतः समसामयिकी महासागर, 2009

3 comments:

माधव( Madhav) said...

nice

Unknown said...

A very keen observation and important collection to all of us who involved in women empowerment.
Saadhuwaad.

Shyam Gautam
Addl.DPM
Tejaswini Panna

sanjeev persai said...

महिला सशक्तिकरण जैसे असाधारण अभियान में हर मुद्दे पर पूरी और सार्थक चर्चा की आवश्यकता होती है, यह आलेख उस चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है, बढ़िया आलेख राजीव जी को बधाई