समन्वय व सामंजस्य का फण्डा.............

''अलग-अलग व्यक्ति का एक ही सच पर सोचने का तरीका बिल्कुल फर्क व अलग दृष्टि से होता है। इसलिए उनके विचारों के निष्कर्ष का काफी हिस्सा विरोधाभासी होता है।''
ब्रम्हांड की संरचना में ज्यादातर दो विपरीत जोडों के संयोजन को देखा जा सकता है। जैसे-जहाँ ज्ञान है वहां अनदेखी है, जहाँ खुशी है वहां दुख है, जहाँ जिन्दगी है वहाँ मृत्यु है इसी तरह और भी । इससे यह तो सुनिश्चित होता है,कि जिन्दगी हमेशा कुछ विपरीत विकल्पों पर ही आधारित है। ये विकल्प एक समूह में होंगे और इन सभी समूहों के विकल्पों के अपने-अपने मकसद हैं। जब हम इनके संबंध में विचार करते हैं तब ये मकसद सदैव टकराव व मतभेद का कारण बनते हैं, सच्चाई का अपना अलग वृहद लक्षण है, जो कि किसी भी सामान्य मानव द्वारा समझा व अपनाया नहीं जा सकता । इसके लिये उसे सतत अभ्यास की आवश्यकता होगी । अलग-अलग व्यक्ति का एक ही सच पर सोचने का तरीका बिल्कुल फर्क व अलग दृष्टि से होता है। इसलिए उनके विचारों के निष्कर्ष का काफी हिस्सा विरोधाभासी होता है। इसी लिए अंतिम निष्कर्ष ''प्राकृत्रिक रुप से आपसी समन्वय व सामन्जस्य’’ का गणित तय करता है।

स्वल्पना तिवारी,
अतिरिक्त कार्यक्रम प्रबंधक,
टीकमगढ़

1 comment:

संगीता पुरी said...

अंतिम निष्कर्ष ''प्राकृत्रिक रुप से आपसी समन्वय व सामन्जस्य’’ का गणित तय करता है .. इसलिए किसी विषय पर विशेष हठ उचित नहीं !!