विकास प्रक्रिया में महिलाओं का क्या योगदान है, इसका अनुमान दुनिया के 31 देशों में किये गये एक अध्ययन के निष्कर्षो से लगाया जा सकता है। इस निष्कर्ष में यह बात सामने आई थी कि महिलाऐं विभिन्न कार्यों में पुरुषों की अपेक्षा अधिक समय देती हैं। विकासशील देशों में महिलाऐं पुरुषों की तुलना में पुरुषों के मुकाबले 13 % और विकसित देशों में 6 % ज्यादा समय देती विश्व की आधी आबादी याने महिलाओं ने पुरुषों से जिस तरह कंधे से कंधा मिला कर कार्य किया है, उससे ही समूचा विश्व तरक्की और खुशहाली के रास्ते पर अग्रसर हो सका है। इसके बावजूद महिलाओं की भागीदारी को वह मान सम्मान नहीं मिल पाया है, जिसकी वह हकदार हैं। सबसे चोंकाने वाली बात यह है, कि भारत ही नहीं अपितु समूचे विष्व की महिलाऐं शोषित एवं पीड़ित हैं। विश्व में होने वाले कार्यो का 60 % कार्य महिलाऐं करतीं हैं लेकिन दुनिया भर की महिलाओं के हिस्से में 10 % जमीन का मालिकाना हक प्राप्त नहीं है अर्थात् 90 % से अधिक जमीन के मालिक पुरुष हैं। विश्व की आधी आबादी पुरुषों से अधिक घंटे कार्य करते हुए 13 % अधिक समय घरेलू कार्यो में भी लगाती हैं। इसके बदले उन्हें प्राप्त होता है पुरुषों से 30 से 40 % कम औसत वेतन । महिलाओं द्वारा पुरुषों की बराबरी से कार्य करने के बाद भी उन्हें कम वेतन और मजदूरी देना, उन्हें आर्थिक रुप से सशक्त बनने में बाधक सिद्ध होता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है, इसी कारण उचित देखभाल के अभाव में लाखों महिलाऐं हर साल गर्भवती होने पर उसकी कठिन प्रक्रिया के दौरान अपने प्राण त्याग देती हैं,तो लाखों महिलाऐं असुरक्षित गर्भपात के कारण दम तोड़ देती हैं। गर्भ निरोध के लिए अपनाऐ जाने वाले स्थाई साधनों में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का खुलासा नसबंदी से हो जाता है जिससे 10 % से भी कम पुरुष नसबंदी करवाते हैं,जबकि 90 % से अधिक मामलों में महिलाओं को ही नसबंदी करवानी पड़ती है,जबकि महिलाओं की नसबंदी प्रक्रिया पुरुषों की तुलना से ज्यादा कठिन है। भारत में जनसंख्या वृद्धि के लिए महिलाओं को मुख्य रुप से दोषी ठहराया जाता है, जबकि इसमें पुरुष एवं परिवार की पुत्र प्राप्ति की लालसा मुख्य कारण होती है। गर्भावस्था एवं शिशु जन्म के दौरान देखरेख के अभाव में रक्त अल्पता एवं कुपोषण की शिकार बनकर रोगी बन जाती है यही कारण है कि भारत में महिलाओं की औसत आयु में भी कमी आई है। भारत जैसे देशों में महिला शिक्षा की कमी से नारी प्रगति को अवरुद्ध कर रखा है। एक ओर जहाँ केरल,महाराष्ट्र,तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में महिला साक्षरता दर संतोषजनक है वहीं उत्तरप्रदेष,मध्यप्रदेष,राजस्थान,तथा बिहार, जैसे राज्यों में साक्षरता दर चिंताजनक है क्योंकि इन 4 प्रांतों में देश की बड़ी जनसंख्या निवास करती है (33।57 करोड़ 1991 की जनगणना अनुसार) कृषि क्षेत्र में भी महिलाओं का कार्य पुरुषों से अधिक है लेकिन वे सिर्फ श्रमिक बनकर रह गई हैं। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है जिससे महिलाओं की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसके तहत वे अपना योगदान अधिक से अधिक दे रहीं हैं। एक अध्ययन के अनुसार 78 % कृषक महिलाऐं 51 से 96 % तक कृषि कार्य पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर करती हैं। विकसित देशों की तुलना में भारत जैसे विकासशील देश की ग्रामीण महिलाऐं पुरुषों से औसतन दस गुना ज्यादा घंटे काम कर रहीं हैं। महिलाओं की घटती संख्या भी उनके साथ होने वाले भेदभाव को बयां करती हैं, 1901 में प्रति हजार पुरुषों पर 972 महिलाऐं थी जो 1991 में घटते 927 प्रति हजार पर पहुँच गई थी। उपरोक्त निष्कर्षों से यह बात सामने आती है,कि महिलाऐं वे सब काम कर रहीं हैं जो पुरुष करते हैं। इसके बावजूद यदि समाज महिलाओं की उपेक्षा करे, उनका शिक्षित होने का हक छीने, उनके समुचित विकास पर ध्यान न दे, पुरुषों के बराबर ऊॅंचा उठाने की कोशिश न करे तो वह समाज निश्चित रुप से विकास के रास्ते आगे नहीं बढ़ सकता है। महिलाओं को पर्याप्त सम्मान उनके कार्य को सराहना और बराबरी का दर्जा देना आज की पहली आवष्यकता है। मध्य प्रदेश के 6 जिलों टीकमगढ़,पन्ना,छतरपुर,डिण्डोरी,मंण्डला और बालाघाट जिलों में संचालित तेजस्विनी ग्रामीण महिला सषक्तिकरण कार्यक्रम में इन सभी बातों का समावेष किया गया है। योजनांतर्गत 180000 महिलाओं को संगठित कर सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक रुप से सषक्त बनाने के जमीनी प्रयास शुरु हो चुके हैं, परिणाम स्वरुप ग्रामीण महिलाओं में बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं। महिलाऐं उनके विकास के तीन आधार स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर बाते करने लगी हैं।
सुशील कुमार वर्मा
जिला कार्यक्रम प्रबंधक
तेजस्विनी कार्यक्रम टीकमगढ़
2 comments:
दुनिया की आँखे खोलता हुआ आलेख! इसे ब्लाग पर प्रकाशित करने के लिए आभार!
उम्दा लेख। इसे पढकर शायद लोगो की आखें खुल जाये।
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