गावों की स्थिति किसी से छुपी नही है गाँवों का युवा भले ही नौकरी की तलाश में गांव छोड़कर शहरों की ओर रुख कर रहा हो लेकिन एक रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में गांव शहरों से आगे रहे हैं।
हालांकि, वर्ष 1998-2005 के बीच कृषि से जुड़े कामों में गिरावट दर्ज की गयी है।
इस दौरान ग्रामीण इलाकों में लोगों को अधिक रोजगार मिला है। इसका खुलासा पांचवी आर्थिक जनगणना, 2005 में किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 98 से लेकर 2005 के दौरान कुल 4।18 करोड़ प्रतिष्ठान खोले गए। इनमें से 2.55 करोड़ प्रतिष्ठान ग्रामीण इलाकों में खुले वही शहरी इलाकों में 1.62 करोड़ प्रतिष्ठानों की स्थापना की गयी। इस कारण इन सात सालों के दौरान ग्रामीण इलाकों के रोजगार की दरों में शहरों के मुकाबले बढ़ोतरी दर्ज की गयी। रोजगार में कुल बढ़ोतरी 2.78 फीसदी रही। इनमें ग्रामीण इलाकों में 3.88 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई तो शहर में मात्र 1.70 फीसदी की दर से। रिपोर्ट के मुताबिक गैर कृषि कामों से 3.57 करोड़ लोग जुड़े नजर आए तो खेती के कामों में मात्र 60.8 लाख लोगों की सहभागिता नजर आयी। विभिन्न प्रकार के प्रतिष्ठानों के पंजीयन में इस दौरान 4.69 फीसदी की दर से विकास हुआ। ग्रामीण इलाकों में यह दर 5.7 फीसदी रही तो शहरी इलाकों में 3.69 फीसदी। 1998 में कुल प्रतिष्ठानों की संख्या 3.03 करोड़ थी। 2005 में यह बढ़कर 4.18 करोड़ हो गयी। कृषि से जुड़े कामों में पशुपालन लोगों का सबसे पसंदीदा काम पाया गया। गैर कृषि कामों में सबसे अधिक 41.8 फीसदी की दर से रिटेल प्रतिष्ठानों की स्थापना हुई। इस मामले में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान 23.3 फीसदी देखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 98-2005 के दौरान कुल 10.09 करोड़ रोजगार का सृजन हुआ। 25.25 फीसदी की दर से सबसे अधिक रोजगार का सृजन मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में हुआ। सात सालों के दौरान इस क्षेत्र में 2.55 लाख लोगों को रोजगार मिला तो रिटेल के क्षेत्र में कुल 2.51 करोड़ लोगों को नौकरी दी गयी। 92 लाख लोग पशुपालन से जुड़े काम में पाए गए। रिपोर्ट के मुताबिक इन सात सालों के दौरान सबसे अधिक प्रतिष्ठानों की स्थापना मिजोरम में हुई। यहां इसकी दर 9.71 रही।
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