किसी भी काम की शुरुआत आपके प्रभाव से ही होती है, किसी भी काम की सफलता भी बहुत कुछ आपके प्रस्तुतीकरण पर ही निर्भर करती है. अतः जरूरी है की आप अपने व्यक्तित्त्व को संवारें जो की आपके साथ आपके द्वारा किये जाने वाले काम को भी प्रभावशाली बनाये.
कुछ लोग कहते हैं की हम उस जैसे नहीं बन सकते जो सफल है, यहाँ ये स्पष्ट कर देना जरूरी है की हमारा उद्देश्य आपको किसी के जैसा बनाना कतई नहीं है, प्रकृति ने हर व्यक्ति के अंदर कुछ विशेष गुण दिए हैं आवश्यकता उनकी पहचान करने और उनका बेहतर उपयोग करने की क्षमता की है. जब हम महिलाओं के बीच काम कर रहे हों और जन समुदाय को बेहतर सोच और समाज के निर्माण के लिए प्रेरित कर रहे हों तो हमारा अपना व्यक्तित्व इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जैसे की हम देखते हैं की कोई मूर्तिकार एक मूर्ती बनाते समय किसी बेडौल पत्थर को लेता है और उसके निरर्थक भाग को छील कर अलग कर देता है जिससे उस बेडौल पत्थर का आकार सुन्दर हो जाता है, बिलकुल ठीक इसी तरह हमारी कुछ बुराइयां अलग होते ही हमारे व्यक्तित्व की असली चमक सामने आती हैं .
प्रायः हम देखते है की कुछ लोग किसी को भी जल्दी ही प्रभावित कर लेते है और उनसे एक बेहतर तालमेल और सम्बन्ध कायम कर लेते है, ये सब संभव है अपनी कुछ आधार भूत आदतों को समझने की और उन्हें अपने जीवन में उतरने की. नीचे कुछ बातें दी जा रही हैं जिनकी सहायता से हम अपने व्यक्तित्व का विकास करके अपने व्यक्तित्त्व को प्रभावशाली कैसे बना सकते हैं:
दूसरों के प्रति स्वयं का व्यवहार
सबसे जरूरी है दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार, हमारा व्यवहार हमारे आसपास के वातावरण को बनाता है या बिगता है, उचित होगा की हमारा व्यवहार संयमित हो जिससे माहौल भी संयमित रहे. अपने व्यवहार से हम कभी भी किसी को अपमानित न करें और न ही कभी दूसरों की शिकायत करें। महिलाओं से संवाद स्थापित करते समय इस बात का अच्छा खासा ख्याल रखें.
दूसरों के काम की तारीफ़
दूसरों में जो भी अच्छे गुण हैं उनकी ईमानदारी के साथ दिल खोल कर प्रशंसा करें। यदि आप किसी की प्रशंसा नहीं कर सकते तो कम से कम दूसरों की निन्दा कभी भी न करें। किसी की निन्दा करके आपको कभी भी किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल सकता। अगर किसी के काम की आलोचना करना हो तो प्रयास रहे की वह कहीं व्यक्तिगत न हो जाए, इस कार्य में लहजा और तथ्य आपकी मदद कर सकते है.
सभी को पसंद आने वाला व्यक्तित्व
दूसरों को सुनने और समझने में रुचि लें। यदि आप दूसरों में रुचि लेंगे तो दूसरे भी अवश्य ही आप में रुचि लेंगे।
अच्छे श्रोता बनें और दूसरों को उनके विषय में बताने के लिये प्रोत्साहित करें।
एक प्रेरक के तौर पर बात करते समय ध्यान रखें की आपके विचार यहाँ महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, दूसरों की रुचि और आवश्यकता को ही महत्त्व दें, याद रखें अआपकी भूमिका सिर्फ एक मददगार की है अतः उनपर अपने विचार न थोपें. दूसरों के महत्व को स्वीकारें तथा उनकी भावनाओं का आदर करें।
अपने हाव भाव
बात करते समय अक्सर हमारे हमारे भाव भंगिमाए चर्चा के अनुकूल नहीं होती है जिससे प्रभाव पैदा नहीं हो पाटा है अतः कोशिश रहे की हमारी मुखाकृति, हाथ, आवाज का उतार चढाव और वेश भूषा हमेशा अनुकूल ही रहे. जो व्यक्तित्व के प्रभाव को बढ़ाने के साथ ही हमारे विचारों को भी वजन प्रदान करती है.
कुतर्क न करें
तर्क का अंत नहीं होता। निरर्थक बहस करने की अपेक्षा सार्थक बहस अधिक उपयुक्त है। दूसरों की राय को सम्मान दें। ‘आप गलत हैं’ कभी भी न कहें। यदि आप गलत हैं तो सबसे पहले अपनी गलती को स्वीकारें। दूसरों को अपनी बात रखने का पूर्ण अवसर दें इससे वे अनुभव करेंगे कि आपकी नजर में उनकी बातों का पूरा पूरा महत्व है।
नजर दूसरे की भी
किसी भी घटनाक्रम को दूसरों की दृष्टि से देखने का ईमानदारी से प्रयास करें। इससे ये साबित होगा की आपका दूसरों की इच्छाओं तथा विचारों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया है । साधारण तया हम बातचीत के दौरान उत्तेजित होकर दूसरों को चुनौती देने लगते है जो की सार्थक चर्चा के लिए उचित नहीं है. अपने तथ्य रखें और फिर चर्चा होने दें सभी को अपने तथ्यों से सहमत करने का प्रयास करें। हमारे ये प्रयास सहभागी चर्चा और निर्णय की नींव को मजबूत ही करेंगे.
मूल्यांकन स्वयं का भी
खुद का ईमानदार मूल्यांकन अत्यंत आवश्यक है. अपने विचारों के बारे में और कार्य प्रणाली के बारे में हमेशा सोचें, और अपनी कमियों के बारे में अपने मित्रों से चर्चा करें इससे आपको अपने अंदर सुधार लाने के साथ साथ वह क्षमता भी हासिल होगी जिससे आप अपने बारे में भी विश्लेषण कर सकें.
साधारणतया हमारा व्यक्तित्व छोटी छोटी बातों से प्रभावित हो जाता है कई बार हम किसी मुसीबत में भी फंस जाते है. अगर हम इन छोटी बातों का ध्यान रखें तो कुछ फायदा तो हो ही सकता है. बाकी और भी प्रयासों की जरूरत है.
कुछ लोग कहते हैं की हम उस जैसे नहीं बन सकते जो सफल है, यहाँ ये स्पष्ट कर देना जरूरी है की हमारा उद्देश्य आपको किसी के जैसा बनाना कतई नहीं है, प्रकृति ने हर व्यक्ति के अंदर कुछ विशेष गुण दिए हैं आवश्यकता उनकी पहचान करने और उनका बेहतर उपयोग करने की क्षमता की है. जब हम महिलाओं के बीच काम कर रहे हों और जन समुदाय को बेहतर सोच और समाज के निर्माण के लिए प्रेरित कर रहे हों तो हमारा अपना व्यक्तित्व इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जैसे की हम देखते हैं की कोई मूर्तिकार एक मूर्ती बनाते समय किसी बेडौल पत्थर को लेता है और उसके निरर्थक भाग को छील कर अलग कर देता है जिससे उस बेडौल पत्थर का आकार सुन्दर हो जाता है, बिलकुल ठीक इसी तरह हमारी कुछ बुराइयां अलग होते ही हमारे व्यक्तित्व की असली चमक सामने आती हैं .
प्रायः हम देखते है की कुछ लोग किसी को भी जल्दी ही प्रभावित कर लेते है और उनसे एक बेहतर तालमेल और सम्बन्ध कायम कर लेते है, ये सब संभव है अपनी कुछ आधार भूत आदतों को समझने की और उन्हें अपने जीवन में उतरने की. नीचे कुछ बातें दी जा रही हैं जिनकी सहायता से हम अपने व्यक्तित्व का विकास करके अपने व्यक्तित्त्व को प्रभावशाली कैसे बना सकते हैं:
दूसरों के प्रति स्वयं का व्यवहार
सबसे जरूरी है दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार, हमारा व्यवहार हमारे आसपास के वातावरण को बनाता है या बिगता है, उचित होगा की हमारा व्यवहार संयमित हो जिससे माहौल भी संयमित रहे. अपने व्यवहार से हम कभी भी किसी को अपमानित न करें और न ही कभी दूसरों की शिकायत करें। महिलाओं से संवाद स्थापित करते समय इस बात का अच्छा खासा ख्याल रखें.
दूसरों के काम की तारीफ़
दूसरों में जो भी अच्छे गुण हैं उनकी ईमानदारी के साथ दिल खोल कर प्रशंसा करें। यदि आप किसी की प्रशंसा नहीं कर सकते तो कम से कम दूसरों की निन्दा कभी भी न करें। किसी की निन्दा करके आपको कभी भी किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल सकता। अगर किसी के काम की आलोचना करना हो तो प्रयास रहे की वह कहीं व्यक्तिगत न हो जाए, इस कार्य में लहजा और तथ्य आपकी मदद कर सकते है.
सभी को पसंद आने वाला व्यक्तित्व
दूसरों को सुनने और समझने में रुचि लें। यदि आप दूसरों में रुचि लेंगे तो दूसरे भी अवश्य ही आप में रुचि लेंगे।
अच्छे श्रोता बनें और दूसरों को उनके विषय में बताने के लिये प्रोत्साहित करें।
एक प्रेरक के तौर पर बात करते समय ध्यान रखें की आपके विचार यहाँ महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, दूसरों की रुचि और आवश्यकता को ही महत्त्व दें, याद रखें अआपकी भूमिका सिर्फ एक मददगार की है अतः उनपर अपने विचार न थोपें. दूसरों के महत्व को स्वीकारें तथा उनकी भावनाओं का आदर करें।
अपने हाव भाव
बात करते समय अक्सर हमारे हमारे भाव भंगिमाए चर्चा के अनुकूल नहीं होती है जिससे प्रभाव पैदा नहीं हो पाटा है अतः कोशिश रहे की हमारी मुखाकृति, हाथ, आवाज का उतार चढाव और वेश भूषा हमेशा अनुकूल ही रहे. जो व्यक्तित्व के प्रभाव को बढ़ाने के साथ ही हमारे विचारों को भी वजन प्रदान करती है.
कुतर्क न करें
तर्क का अंत नहीं होता। निरर्थक बहस करने की अपेक्षा सार्थक बहस अधिक उपयुक्त है। दूसरों की राय को सम्मान दें। ‘आप गलत हैं’ कभी भी न कहें। यदि आप गलत हैं तो सबसे पहले अपनी गलती को स्वीकारें। दूसरों को अपनी बात रखने का पूर्ण अवसर दें इससे वे अनुभव करेंगे कि आपकी नजर में उनकी बातों का पूरा पूरा महत्व है।
नजर दूसरे की भी
किसी भी घटनाक्रम को दूसरों की दृष्टि से देखने का ईमानदारी से प्रयास करें। इससे ये साबित होगा की आपका दूसरों की इच्छाओं तथा विचारों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया है । साधारण तया हम बातचीत के दौरान उत्तेजित होकर दूसरों को चुनौती देने लगते है जो की सार्थक चर्चा के लिए उचित नहीं है. अपने तथ्य रखें और फिर चर्चा होने दें सभी को अपने तथ्यों से सहमत करने का प्रयास करें। हमारे ये प्रयास सहभागी चर्चा और निर्णय की नींव को मजबूत ही करेंगे.
मूल्यांकन स्वयं का भी
खुद का ईमानदार मूल्यांकन अत्यंत आवश्यक है. अपने विचारों के बारे में और कार्य प्रणाली के बारे में हमेशा सोचें, और अपनी कमियों के बारे में अपने मित्रों से चर्चा करें इससे आपको अपने अंदर सुधार लाने के साथ साथ वह क्षमता भी हासिल होगी जिससे आप अपने बारे में भी विश्लेषण कर सकें.
साधारणतया हमारा व्यक्तित्व छोटी छोटी बातों से प्रभावित हो जाता है कई बार हम किसी मुसीबत में भी फंस जाते है. अगर हम इन छोटी बातों का ध्यान रखें तो कुछ फायदा तो हो ही सकता है. बाकी और भी प्रयासों की जरूरत है.
संजीव परसाई
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