गाँव में रोजगार व पंचायतों की भूमिका

"सरकारों के सामने यक्ष प्रश्न है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक रोजगार के अवसर कैसे पैदा हों, दरअसल जरूरत इसके मूल में जाने कि है, पहले यह तो तय किया जाए कि असल में ये युवा बेरोजगार क्यों है ? समस्या को उठाया है टीकमगढ़ कि अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक सुश्री स्वल्पना तिवारी ने। तेजस्विनी कार्यक्रम के अर्न्तगत महिलाओं के लिए रोजगार चयन कि बात प्रारम्भ हो चुकी है, अतः ये विचार प्रासंगिक हैं साथ ही दिशा देने वाले भी, कृपया इस चर्चा को आगे बढायें ..........
आपके विचारों का स्वागत है
आज ग्रामीण परिदृष्य कमोवेश यही है,कि कुछ पढ़ा लिखा युवा वर्ग अपनी श्रम शक्ति की अनुपयोगिता के चलते बेकार घूमते-फिरते अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। यह इसलिए नहीं कि वे अकर्मण्य हैं, यह तो इस कारण कि उनकी क्षमतानुकूल रोजगार या स्वरोजगार उपलब्ध नहीं है। आप चाहे तो किसी भी युवा को रोक कर पूछ सकते है कि भई क्या कर रहे हैं । जबाब घुमा फिरा कर यही होगा रोजगार की तलाश । बात यहीं नहीं खत्म होती समस्या तो और दुरुह तब होती है जबकि हम देखते हैं, लोगों की विषमताऐं मात्र सामाजिक, आर्थिक या भौगौलिक नहीं है। वरन उनके कार्य करने की आदतें व आवश्यकताएं भी भिन्न हैं ऐसी स्थिति में ही पंचायतों की सार्थकता समझ आती है। प्रत्येक पंचायतें अपने लोगों की आवश्यकता व क्षमताओं को ध्यान में रखते हुये स्थानीय उपलब्धताओं व बाह्य सहयोग के आधार पर रोजगार उपलब्ध करवाने का प्रयास कर सकती हैं। ये क्षेत्र सामान्यतः कृषि,पशुपालन ,लघुउधोग, वन व खनन आधारित हो सकते हैं। यह तो सभी जानते है,कि अंतिम छोर का व्यक्ति गरीब है। इसके लिये सरकारें अथक प्रयासों से गरीबी दूर करने के लिए अनेकों योजनाऐं तैयार कर उन्हें लागू भी करतीं हैं। किन्तु फ्रिक के साथ रणनीति तय करने की जरुरत यह है, कि योजनाओं की विस्तृत व सही जानकारी उस अंतिम व्यक्ति तक समय पर उपलब्ध हो सके।
पंचायती राज व्यवस्था के पश्चात यह अपेक्षा रही कि यह कमी अब पंचायतों के दायित्व निर्वहन से दूर होगी । किन्तु विडम्बना यह है, कि आज भी वास्तविक हितग्राही तक या कहें जन-जन तक पूर्ण जानकारी का अभाव यथावत विधमान है। यही कारण है कि इतनी सार्थक योजनायें भी गरीबी कम नहीं कर पा रहीं हैं। यहीं गांव की पंचायतें लोगों की मदद कर सकती हैं। पंचायतों की बैठकों में सरकारी अमले को बुलाकर योजनाओं व कार्यक्रमों की जानकारी ली जाकर समस्त ग्रामवासियों तक पहुंचायी जाए ।
ग्राम व ग्रामवासियों की दशा सुधारने की जटिल समस्या आज सभी पंचायतों, विभागों व गैर सरकारी संगठनों के सामने अपना विकराल रुप धर कर खड़ी हैं। इसके लिये अतिरिक्त प्रयत्नों की आवश्यकता तो है ही किन्तु इन प्रयत्नों को सूक्ष्म से बृहद की दिशा में देखने की आवश्यकता होगी । इसके लिये हमारे रणनीतिकारों व सामाजिक योद्धाओं को स्वरोजगार की दिशा व भी दशा को समझना होगा । तभी हम ग्रामीण स्तर पर रोजगार को सुनिश्चित कर जीवन स्तर में सुधार के साथ-साथ पलायन जैसी समस्या से निजात पा सकेगे।

स्वल्पना तिवारी ,
अतिरिक्त जिला कार्यक्रम प्रबंधक,
तेजस्विनी टीकमगढ़ म.प्र.




4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

गाँव में रोजगार व पंचायतों की भूमिका का लाभ तभी है, जबकि कमीशनखोरी बन्द हो जाये।

Anonymous said...

Sraahneey.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

sanjeev persai said...

आदरणीय शास्त्री जी एवं काव्या जी,
आपके विचारों के लिए धन्यवाद,
असल में इस ब्लॉग के माध्यम से हम एक सार्थक चर्चा करना चाह रहे हैं,
जो समस्यायें हैं उनसे इनकार नहीं है, लेकिन असल लक्ष्य तो उनसे निजात पाकर
जमीन तक विकास की किरण पहुंचाना है.